पिता और पुत्री के संवाद
पुत्री : पिताजी आप मुझसे कुछ पूछना चाहते हैं ?
पिता : हां बेटा, तूने फैक्ट्री में मिली ट्रेनिंग मैनेजर की नौकरी क्यों छोड़ी ?
पुत्री : पिताजी, फैक्ट्री के जो पर्सनेल एंड एडमिनिस्ट्रेशन के प्रेजिडेंट, जो अब फैक्ट्री के जॉइंट प्रेजिडेंट हैं, जिनके अंडर मैं काम करती थी उन्होंने ही मुझसे कहा इस्तीफा देने या तो वेह मुझे बर्खास्त कर देते। इसलिए मैंने नौकरी छोड़ दी।
पिता : बेटी ,तुमने ऐसा क्या किया था जो उन्होंने तुम्हे ऐसे कहा ? तुम्हारी लर्निंग डिजाईन डेवलपमेंट वाली नौकरी में तुमको कहा था कि कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरी नहीं है और फिर बर्खास्त कर दिया था, ऐसा क्यों ?
पुत्री : पिताजी, S K लर्निंग सलूशन वाली नौकरी तो कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी थी पर मैंने जब मना कर दिया तो उन्होंने मुझे रेगुलर एम्प्लॉयमेंट पर रखा। जब उनका काम पूरा हो गया तब उन्होंने मुझे यह कहकर बर्खास्त कर दिया कि अब उनके पास कोई प्रोजेक्ट नहीं है काम करने के लिए।
पिता : पर यह फैक्ट्री वाली नौकरी तो कॉन्ट्रैक्ट की नहीं थी, तो क्या हुआ ?
पुत्री : पिताजी, बहुत लंबी कहानी है।
पिता : बताओ मैं सुनना चाहता हूँ।
पुत्री : पिताजी यह नौकरी फैक्ट्री ने अपनी नयी पालिसी के तहत एक महिला को देने की सोची क्योंकि वह महिला कर्मियों को बढ़ावा देना चाहते थे। छह प्रार्थियों में से मेरा इंटरव्यू में चयन हुआ क्योंकि उनमें से मैं सबसे कम तनख्वा पाती थी जबकि, मेरा उन सबसे ज्यादा तज़ुर्बा था और उम्र भी।
पिता : वहां पर और महिला कर्मी नहीं थी ? तुमने ऐसा क्या कर दिया था ?
पुत्री : अटेंडेंस और टाइम रिकॉर्ड ऑफिस, प्रोडक्शन डिपार्टमेंट, एकाउंट्स डिपार्टमेंट में और रिसेप्शन में महिला कर्मी थीं और मुझे मिलाकर मैनेजमेंट में पांच महिला कर्मी थीं.
पिता : तुम में और उनमे क्या अंतर था ?
पुत्री : पिताजी , शायद मुझसे नज़ाकत और शोखियों के गुरूर सी पर फूहड़ मज़ाक में शामिल होने वाली महिला के रूप में देखना चाहा था , पर मैंने अपने काम से काम रखा और हमेशा की तरह मैंअल्कि सहकर्मी के दर्ज़े पर ने अपने सहकर्मियों को आदमी और औरत के दर्ज़े पर नहीं सहकर्मी के दर्ज़े पर आदर और रेस्पेक्ट किया। चाहे वह फैक्ट्री का कर्मी हो या अफसर। पिताजी , आप को भी ऐसे ही पेश आते हुए देखा है।
पिता : बेटी , तुमतो जानती हो , while in rome do as the romans do . तुमने भी उनकी तरह ही पेश आना था ?
पुत्री : पिताजी , आपको तो कभी ऐसे करते हुए नहीं देखा ?
पिता : तुम्हारी माँ के अनुसार मैं ज़िन्दगी की दौड़ में एक हारा हुआ इंसान हूँ।
तुम अपनी आप बीती सुना रही थी , फिर क्या हुआ ?
पुत्री : पिताजी, जब मैंने नौकरी सम्हाली तो पाया कि मेरे पहले जो ट्रेनिंगहेड थे उनके द्वारा बनाये बजट और ट्रेनिंग का सभी लेखा जोखा कंप्यूटर से डिलीट कर दिया गया था। ट्रेनिंग कार्यक्रम की सभी फाइल में कागज़ात और जानकारी दुरुस्त नहीं थी। ट्रेनिंग के सभी दस्तावेज़ ठीक से नहीं रखे गए थे।
पिता : याद करो, नौकरी आरम्भ करने से पहले तुमने कभी अपने कोई दस्तावेज़ फेंके या डिलीट किये थे ?
पुत्री : हाँ , मुझे जितने भी ईमेल मिले थे शादी (मैट्रिमोनियल ) साइट्स के मार्फ़त सब जाली विवाह पात्रों से जिन्होंने मुझे गैर कानूनी कार्यों में उनकी मदद करने को कहा था, और मैंने उनको मना कर दिया था।
पिता : तुमने यह जानकारी पुलिस और उन वेबसाइट्स को नहीं दी थी ?
पुत्री : वेबसाइट्स को तो जानकारी दी थी, पर माँ ने कहा था हम अकेले हैं पुलिस को बताने से भी वह कोई कार्यवाही तो नहीं करेंगे, बल्कि हम को ही परेशान करेंगे।
पिता : हूँ , तो तुमको फैक्ट्री की ट्रेनिंग प्रणाली की जानकारी देने की जिम्मेदारी किसकी थी ?
पुत्री पाटिल साहेब , जो पर्सनेल डिपार्टमेंट में जनरल मेनेजर हैं और ट्रेनिंग मेनेजर के जाने के बाद ट्रेनिंग के कार्यों का संचालन कर रहे थे और मिश्राजी, जो कॉन्ट्रैक्ट पर कार्यरत थे और पाटिल की मदद कर रहे थे. दरअसल मिश्रजी ही सारा काम संभाल रहे थे। उन दोनों को कहा गया था मेरी मदद करने।
पिता : बेटा , क्या उनसे सब जानकारी नहीं मिली ?
पुत्री : उन्होंने कहा था कि जो कोई जानकारी है वह फाइलों और कंप्यूटर में मौजूद है। पटेल जी ने तो मुझसे कहा था पिछले सालों के बजट की नक़ल उतार कर इस साल का बजट बना लूँ। बजट को तो कोई इस्तेमाल नहीं करता, ट्रेनिंग के खर्चे तो प्रेसिडेंट और चीफ फिनांशियल अफसर मोहता साहेब ही करते है, खर्चा तो बजट से कम ज़्यादा हो सकता है। उनकी बात मुझे जंची नहीं और मैंने जब यह बात प्रेजिडेंट दांडे जी से की तो वह चुप रहे और कहा कि कोई ट्रेनिंग प्रोग्राम की जानकारी आने से और उसे कार्यरत करने से पहले उनकी रज़ामंदी ले लूँ। मिश्राजी को कहा गया था मेरी मदद करने के लिए। वह पर्सनेल डिपार्मेंट के हिंगासिआ जी भी मदद करते और मेरी भी।
पिता : तो तुमने दांडे के कहे अनुसार काम नहीं किया ?
पुत्री : अफसरवाद और यूनियनवाद का बोल बाला था. सरकारी दफ्तरों वाला माहौल था। ओफ्फिशल ईमेल कोई इस्तेमाल नहीं करता था। सब पीओन के मार्फ़त चिट्ठी पत्री करने में विश्वास करते थे। सबसे अजीब बात यह थी कि हर डिपार्टमेंटल हेड के ऑफिस कमरे के दरवाज़े पर उनका नेम प्लेट था, उनके डिपार्टमेंट और पद का नहीं। बहुत कम लोग कंप्यूटर इस्तेमाल करते थे. ऑफिस कमरा नंबर पाँच दांडे जी का था और ऑफिस कमरा नंबर छः मेरा , अर्थात ट्रेनिंग डिपार्टमेंट का था। मैं जब भी दांडे जी से मिलने क्योंकि उनके ऑफिस जाती तो सुबह से शाम तक उनको ऑफिस में किसी न किसी से परामर्श करते पाती। मैंने फिर ईमेल से उनसे संपर्क कर मेरे कार्य की सभी जानकारी देनी शुरू की। साथ ही उनके p.a से अपॉइंटमेंट लेने की पहल की।
पिता : तो बड़े डिपार्टमेंट हेड्स के p.a. भी थे ? वह क्या करते थे ?
पुत्री : इक्का दुक्का डिपार्टमेंट हेड्स को अपने p.a. की सेवा लेते हुए पाया। यह मुझे तब पता चला जब मैंने हर डिपार्टमेंट हेड से अब तक के हुए उनके ट्रेनिंग की डेटा मांगी। थर्मल पावरहाउस के राव (Rao ) के p.a. ने तो उनसे फ़ोन पर संपर्क करने को कहा. क्योंकि rao हमेशा मीटिंग में व्यस्त रहते है और ऑफिस में जाने से नहीं भी मिल सकते हैं। जब मैंने उन्हें फ़ोन किया तो उन्होंने नाराज़ होकर कहा कि वह मीटिंग में व्यस्त हैं और ईमेल या उनके p.a. के मार्फ़त contact करो। मैंने उनसे कहा कि मैंने दोनों ही किया है और उनका ज़बाब नहीं मिलने पर फ़ोन किया और यह भी कहा कि अगर वह मीटिंग में वयस्त हैं तो फ़ोन क्यों उठाया ? में जब वः खाने के मज़ाक कर रहे थे कैंटीन में मिले तो उन्होंने कहा कि वह तो मज़ाक कर रहे थे। राव साहब employee engagement के विशेषज्ञ हैं , पिताजी , आप सुन रहे हैं ना ?
पिता : हाँ बेटी , दांडे और उनके p.a. के बारे में कह रही थी।
पुत्री : पिताजी आप तो समझ ही गए होंगे। दांडे अपने p.a. की सेवा कितना लेते थे। हमेशा कोई न कोई , ख़ास कर पटेल और पी एंड ए के जनरल मेनेजर राव , हमेशा p.a. . के ऑफिस में मौजूद रहते थे। यह मेरे लिए अच्छी बात थी क्योंकि उनके सामने ही मैं अपॉइंटमेंट लेने की बात करती थी। एक बार एक वर्कर यूनियन लीडर , जो उन बेशुमार लोगों में से एक थे जो बेधड़क दांडे के ऑफिस में आते जाते थे , उन्होंने मुझसे एक बार पूछ ही लिया , कि मैं दांडे के p.a. के पास क्यों जाती हूँ। मैंने कहा दांडे से मिलने का अपॉइंटमेंट लेने। मेरा जवाब सुनकर वह ठहाका लगाकर हँसे थे।
पिता : यह Mr. राव कौन हैं ? ज़रा इनके बारे में बताना ?
पुत्री : वह आंध्र प्रदेश से हैं और प्रीमियर मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से मैनेजमेंट किया हुआ है। मेरे जैसे वह भी रिलायंस में नौकरी कर चुके थे , पर अच्छे बड़े ओहदे पर , जैसे उन्होंने मुझे बताया था। वर्कर के कंपनसेशन वगेरह का काम काज और उनकी ट्रेनिंग का काम भी देखते हैं। उन्होंने उनके निर्धारित ट्रेनिंग कंपनी से अपने डिपार्टमेंट के लोगों की ट्रेनिंग के आयोजन का काम हम ट्रेनिंग डिपार्टमेंट को दिया था। मैंने मिश्रा के साथ मिलकर उसको अंजाम दिया। मैं जब भी उनसे मिलने जाती तो वह प्लांट विजिट पर होते। मैंने उनसे मिलने की पेशकश भी की थी जब उनको दांडे जी के p.a. के ऑफिस में पाया था। उनको मुझे वक़्त देना पड़ा क्योंकि मेरे induction process के अनुसार मैंने उनसे मिलना था। हर डिपार्टमेंट हेड की तरह राव भी अपने डिपार्टमेंट के बारे में हवा में बातें करने की तरह कुछ मिनट में चलता करने के फिराक में थे। मैंने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा कि मुझे कॉन्ट्रैक्ट डेली वेजर टेम्पररी और परमानेंट वर्कर के कंपनेसैशन और रेगुलेशन्स के बारे समझना है क्योंकि उनके डिपार्टमेंट के मैनेजर्स और फैक्ट्री के वर्कर्स के ट्रेनिंग के दस्तावेजों में कई गैप्स नज़र आये हैं। तभी उनके फ़ोन की घंटी बजी और उन्होंने बाद में फ़ोन करने का कहकर फ़ोन का रिसीवर ठीक से क्रैडल पर नहीं रखा। वह मुझे समझाने ही लगे थे कि दांडे जी उनके ऑफिस कमरे में दनदनाते हुए आये और कहा कि वह कब से राव को फ़ोन करने की कोशिश कर रहे हैं और फ़ोन ही नहीं लग रहा। उन्होंने राव को अपने ऑफिस में बुलाया। उसके बाद मुझे राव से बात करने का संयोग नहीं मिला।
पिता : H.R. का काम कौन सम्हालता था ? तुम्हारा इंटरव्यू किन लोगों ने लिया और उन लोगों से तुम्हारा मिलना हुआ इंडक्शन के तहत ?
पुत्री : पिताजी , इंटरव्यू में तो सब डिपार्टमेंट हेड शामिल थे और उन्होंने तक़रीबन एक घंटे तक मुझसे सवाल जवाब किया था। मेरा फाइनल इंटरव्यू सीनियर प्रेजिडेंट चितले साहब ने लिया था। H.R का काम हिंगासिआ और उनके डिप्टी मेनेजर दुकानिया सम्हालते थे। दुकनिया को हमेशा डायरेक्टर्स के आगे पीछे दौड़ते पाया था और मैनेजर्स से शिकायत रहती थी कि अपनी एक्सपर्टीसे और जानकारी शेयर नहीं करते। मैंने उनसे पूछा भी था कि इंडक्शन में मेरा सेशन चितले साहेब के साथ क्यों नहीं है तो पिंगाससिआ ने तो मजाक मजाक में कहा, 'मैडम ,आप तो घर की मुर्गी दाल बराबर हैं। देखिये ना झोलकर मैडम, जो प्रेसिडेंट साहब की जान पहचान की हैं उनको दस लाख रूपये देकर केवल कोचिंग सक्सेशन प्लानिंग के लिए कंसल्टेंसी दे रखी है। उनकी कंपनी तो हमारे मैनेजमेंट स्टाफ के लिए ट्रेनिंग भी करती है। आप को सॉफ्ट स्किल्स की और स्कूल की ट्रेनिंग भी खुद करने की ज़रुरत नहीं है। आप केवल झोलकर मैडम की कंपनी से ट्रेनिंग करवा दीजिये और सब खुश।' जब मैडम झोलकर मुझसे मिलने आईं थी यह कहकर कि वह नए ट्रेनिंग हेड से मिलना चाहती हैं गोआ छुट्टियों पर जाने से पहले तो उन्होंने मुझसे कहा था ,"मैंने सुना आप रिलायंस की ट्रेनिंग कंपनी में काम करती थीं। आप के कोई सहकर्मी जो मार्केटिंग का काम करने में interested हों तो मुझे ज़रूर बताना। हमे हमारी कंपनी के लिए चाहिए। "
पिता : तुमको स्कूल की ट्रेनिंग का बंदोबस्त करना पड़ता था ? कुछ समझा नहीं ? तुम खुद ट्रेनिंग नहीं करती थी ?
पुत्री : ट्रेनिंग मेनेजर को टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल ट्रेनिंग का प्रबंध मैनेजमेंट के लिए करना पड़ता था. साथ ही वर्कर्स के इंडक्शन ट्रेनिंग का। फैक्ट्री दो तीन स्कूल के संचालन में मदद करती थी। उनके शिक्षकों के ट्रेनिंग जैसे स्पोकन इंग्लिश, सॉफ्ट स्किल्स वगैरह की ट्रेनिंग का प्रबंध करना। फाइल से मिली इनफार्मेशन के अनुसार झोलकर मैडम की ट्रेनिंग कंपनी से ही ट्रेनिंग करवाई जाती थी। टेक्निकल ट्रेनिंग के भी कुछ कंपनी और ट्रेनर थे जिनके सहारे ट्रेनिंग करवाई जाती थी। मेरा काम प्रबंधक का ज़्यादा और ट्रेनर का कम था।
पिता : बेटी , बात कुछ कुछ समझ आ रही है। अब तुम क्रम अनुसार बताओ तुमने कार्य क्षेत्र के दायरे में और उसके बाहर क्या गलतियां कीं।
पुत्री :
१. मैंने शुरू से ही ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के फाइल और सामान रिकॉर्ड कर कंप्यूटर में उसका इन्वेंटरी बनाकर रखा मिश्रजी की मदद से। ट्रेनिंग मटेरियल की इन्वेंटरी एक्सेल शीट में बनाई जिसके लिए मिश्रा जी ने मुझसे कहा 'मैडम , फैक्ट्री के स्टोर वाले कह रहे हैं कि आप कोई रिकॉर्ड ना रखें क्योंकि यह काम तो उनका है। तो मैंने मिश्रा जी से पूछा जब भी ट्रेनिंग की तैयारी करेंगे तब क्या ज़रुरत का सामान गिनने बैठेंगे या आप अपने कंप्यूटर में देखकर ही समझ जायेंगे कि कौन से सामान ट्रेनिंग के लिए लेने हैं ? कंप्यूटर का एक्सेल इन्वेंटरी आपकी जानकारी और सामान का लेखा जोखा रखने के अनुसार ही बना है कि नहीं ?
२. ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के कार्य की सभी फाइल को मिश्रजी से उनके कार्य को सुनियोजित तरह करने के लिए उनकी समझको और सुगढ़ कर तीस चालीस फाइल की जगह केवल दस फाइल में सहज तरह से रखने और रिपोर्ट के लिए जानकारी पाने के लिए तैयार की। मेरे तीन महीने के अंतराल में मिश्रा ने सहजता से उनका प्रयोग भी किया पर मेरे इस्तीफे देने की देर थी उन नए फाइल की जगह पुराने फाइलों ने ले ली। तब पता चला common sense नहीं इस्तेमाल करना चाहिए था।
३. मिश्रजी के उपयोग एक peon की तरह नहीं बल्कि एक सह कर्मी की तरह करने के लिए तीन चार टेक्निकल external ट्रेनिंग का आयोजन मैंने सभी डिपार्टमेंट के हेड और उनके p.a के साथ ईमेल और फ़ोन के मार्फ़त आयोजित की और मिश्राजी ट्रेनिंग के डेटा और रिकॉर्ड को ठीक रने की जिम्मेदारी दी जो काफी हद तक हो गया था। एक ट्रेनिंग वोर्कशॉप के लिए , जिसका न्योता सीनियर प्रेजिडेंट चितले के पास आया था , बड़ी मिन्नत और माथा पच्ची कर सभी डिपार्टमेंट से दस पार्टिसिपेंट्स का जुगाड़ किया जिन्होंने वह वर्कशॉप मेंटेनेंस जनरल मेनेमोबाइल जर सेन साहब के अंशग्रहण किया। वह दिन फैक्ट्री में मेरा आखरी दिन था। इन सब की कोई ज़रुरत नहीं थी। मिश्राजी को peon की तरह हर डिपार्टमेंट में दौड़ाकर करवाना था सब आयोजन करने के लिए। should have been a task manager or master instead of a supervising mentor as a manager
४. प्रोडक्शन के जनरल मेनेजर , जो स्कूलों का प्रेजिडेंट भी था , जब मैं उनसे मिलने गयी स्कूल के कार्य क्रम के विषय में चर्चा करने तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा था : 'हम एक दूसरे का मोबाइल फ़ोन no ले लेते हैं , जब ज़रुरत पड़ेगी तब फ़ोन कर लेंगे। मैंने ऑफिस में लौटकर minutes of the meeting का ईमेल लिखा भालेकर को जिसमे मैंने दांडे और प्रोडक्शन हेड सिंघल और उनके p.a. का ईमेल पता भी शामिल किया और अपने नाम के साथ अपने ऑफिस और मोबाइल फ़ोन नंबर लिखा।
५. इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज के छात्र और छात्राये फैक्ट्री में project work karne आते थे , उनका प्रोजेक्ट वर्क का काम फैक्ट्री के कार्यों से निहित और फैक्ट्री व् छात्र के लिए उपयोगी सीख हो , उसके लिए फैक्ट्री एक कर्मी एक छात्र का mentor हो और उसके प्रोजेक्ट वर्क को सफलता पूर्वक सर्टिफाइ करे , वह छात्रों को भी रास नहीं आया। यह जब मैंने H.R मैनेजमेंट की दो छात्रायों से बातचीत के दौरान पता चला। उनको टाइम अटेंडेंस ऑफिस के कर्मियों और उनके कार्य के बारे जब पूछा तो वह एक हफ्ता वहां बिताकर भी नहीं बता पायी और उन्होंने कहा , 'मैडम हमे इतनी जानकारी की ज़रुरत नहीं है। फैक्ट्री में कौन कौन से डिपार्टमेंट हैं उतना जानना ही काफी है। हमे इंजीनियरिंग कॉलेज के जो छात्र यहाँ प्रोजेक्ट कर रहे हैं, आप हमे आपके साथ मिलकर एक दुसरे के प्रोजेक्ट वर्क के विषय में चर्चा करने क्यों कह रही हैं? इसकी ज़रुरत तो हमारे प्रोजेक्ट के लिए नहीं है। ' मन में यही सवाल उठा , हम पढाई क्यों करते है, केवल एक सर्टिफिकेट , डिग्री या पुरस्कार का तमगा पाने के लिए ?
६.दांडे के साथ मेरी दो तीन डिस्कशन meeting जो हुई उसमे मैंने सुझाया : कॉलेज के छात्रों के प्रोजेक्ट रिपोर्ट लाइब्रेरी में रखें। हर डिपार्टमेंट के ऑपरेशन्स मैन्युअल, सेफ्टी मैन्युअल और एकेडेमिक जानकारी लाइब्रेरी में रखें और लाइब्रेरी की जानकारी human resource पोर्टल पर उपलब्ध कराइ जाये और प्रोजेक्ट पर आये छात्रों के लिए लाइब्रेरी और ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के रिकॉर्ड रूम मे बंदोबस्त करें और मिश्रजी, के लिए एक कंप्यूटर उपलब्ध करने में वह मंज़ूरी दें। दांडे को यह भी कहा की जो मेनेजर एक्सटर्नल ट्रेनिंग और वर्कशॉप में अंशग्रहण करके आते हैं वह आकर अपने डिपार्टमेंट में सहकर्मियों के साथ जानकारी और सीखा हुनर शेयर करें वर्कशॉप या ट्रेनिंग द्वारा। दांडे की बातों से समझी कि वह नहीं चाहता था कि मैं कोई train the trainer कार्यक्रम ना करूं तो मैंने उसका समाधान भी पेश किया। साथ power house और safety department की lecture mode में करवाई वर्कशॉप का उदहारण देते हुए बताया कि ज्यादातर इंटरनल ट्रेनिंग और वर्कशॉप लेक्चर मोड में होने के कारण सब ही ट्रेनिंग सेशन अटेंड नहीं करना चाहते। यह जानकारी मेरे induction के दौरान लोगों से बातचीत करते हुए जानकारी हासिल की थी। ट्रेनिंग की जानकारी और पढ़ाई के सरंजाम human resource portal के माध्यम से सब मैनेजमेंट कर्मियों तक पहुँचाने की पेशकश की तो उत्तर में दांडे ने I.T. डिपार्टमेंट के हेड को मेरे सामने ही ईमेल कर इस कार्य में मेरी मदद करने की अर्जी भेजी , पर I.T. हेड से बातचीत करने पर पता चला कि उनका पोर्टल बहुत पुराना और ज़्यादा I.T. कर्मी ना होने के कारण मेरी मदद करने में उनको मुश्किल होगी। बातचीत के दौरान दांडे को अपने होठों की तरफ इशारा करते पाया। मुझे ख्याल आया कि मैं lipstick नहीं लगाती हूँ। साथ ही माँ का भी ख्याल आया जो हमेशा मुझे मेक-अप कर सज संवरकर , संभ्रांत परिवार की महिला सी दिखती हुई घर के बाहर निकलूँ. मैंने दांडे से स्पष्ट कहा था कि मुझे फैक्ट्री के टेक्निकल विषय में जानकारी ना होने के कारण सभी टेक्निकल ट्रेनिंग के विषय में उनसे परामर्श करना अनिवार्य है और फैक्ट्री के वर्कर्स की उनके परिवार के प्रधान सदस्यों को लेकर सेल्फ डेवलपमेंट वर्कशॉप करने का सुझाव दिया जो उनको बुरा नहीं लगा। मैं अपने हर मीटिंग के मिनट्स का रिपोर्ट बनाकर उनको ईमेल कर देती थी।
७. एक रविवार मैं दोपहर को सिनेमा घर जाकर अंग्रेजी फिल्म martian देखकर आयी और एक डपार्टमेन्टल स्टोर से अपने ज़रुरत का सामान भी ले आई। अगले दिन जब ऑफिस गयी तो ऑफिस के लैपटॉप कंप्यूटर मांगने सेफ्टी डिपार्टमेंट के दो अफसर आये। उन्होंने कहा कि फैक्ट्री किसी का;क्वालिटी अवार्ड जीतने के लिए तैयारी कर रही है और उनके डिपार्टमेंट का लैपटॉप खराब हो जाने के कारण वह दांडे की अनुमति लेकर ट्रेनिंग डिपार्टमेंट का लैपटॉप हफ्ते भर चलने वाली मीटिंग के लिए लेने आये हैं। मैंने दांडे से जाकर पूछा तो उन्होंने मुझे लैपटॉप देने को कहा। मैंने जब बताया कि ट्रेनिंग के कार्य के सभी दस्तावेज़ और रोज के कामकाज का प्लान और रिकॉर्ड भी है जो हमे कामकाज करने के लिए ज़रुरत पड़ेगी। अगर यह बात मिश्रा और मुझे पहले बता दी जाती तो मैं ऑफिस के दुसरे कंप्यूटर में कामकाज की ज़रूरी जानकारी डालकर लैपटॉप सेफ्टी डिपार्टमेंट के लिए तैयार कर देती। सभी डिपार्टमेंट की मीटिंग दो हफ्ते चली जिसमे ट्रेनिंग डिपार्टमेंट को शामिल नहीं किया गया। लैपटॉप में एक्सेल शीट वाली इन्वेंटरी, लाइब्रेरी डिटेल , ट्रेनिंग प्लानर एंड सचेंडूलर , डेली वर्क ट्रैकर, सभी थे जिसमे मिश्रा और मेरे द्वारा किये गए दैनिक कार्यों का लेखा जोखा भी था।
८. परचेस डिपार्टमेंट के हिमानी जी और एकाउंट्स डिपार्टमेंट के हेड विवेक
शुक्ला ने दोनों डिपार्टमेंट की मिलकर एक्सटर्नल ट्रेनिंग करवाई मिश्रा की
मदद लेकर और मैं ट्रेनिंग हेड होते हुए मुझे ट्रेनिंग के बारे में कोई
जानकारी नहीं दी गयी। जब मैं ट्रेनिंग हेड की हैसियत से ट्रेनिंग सेशन का
निरिक्षण करने गयी तो शुक्ला और हिमानी जी को मेरे वहाँ हाजिर रहने से
बेचैन होते हुए पाया। मिश्रा ने मुझसे कहा कि ट्रेनिंग के लिए शुक्ला जी ने
पाटिल और मिश्रा को कहा था। तभी मिश्रा ने यह भी बताया कि iim बैंगलोर से
एक कोर्स के लिए आमंत्रण चितले के पास आया तो वह चितले ने पाटिल और बाकि
डिपार्टमेंट हेड्स के पास भेजा तो डिज़ाइन डिपार्टमेंट के हिमांशु अग्रवाल
और प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के जैन ने सीधे चितले के पास जाकर अपनी अर्जी दे
दी जो पाटिल और मिश्रा से कहा गया iim बैंगलोर भिजवाने को।
९. चितले ने मुझे उन सभी स्कूल और कॉलेज जिनको फैक्ट्री आर्थिक सहायता देती थी, के principal से मिलने को कहा। मैंने पूरी कोशिश की उन सब से जाकर मिलने की पर वह सब ही नहीं मिले यह कहकर कि वह व्यस्त हैं। चितले ने मुझे annual quality awards function में आयोजित group dance में शामिल होने को कहा तो मैंने हिमांगी वेर्णेकर (डिप्टी मैनेजर पी एंड ए ) जो चितले का सन्देश लेकर आई थी , उसे मना कर दिया और उसे बताया भी कि मुझे साँस की तकलीफ है। उसके कुछ दिन के बाद दशहरे के नवरात्री में महिला कर्मियों की ग्रूप फोटो के लिए वह मुझे बुलाकर ले गयी और फोटो खिंचवाते समय उसने मेरे बटक्स को छुआ और चिल्लाकर बोली अरे इतनी तंग जगह में फोटो खींचनी है तो देर क्यों कर रहे हो ? तभी मैंने उससे कहना चाहिए था कि वह अगर मुझे बच्चा समझकर गोद में उठाना चाहती है तो वह मुझे अपने कन्धों पर बिठा ले। तब हम महिलाओं को बाहर मैं ऑफिस बिल्डिंग के सामने खड़े होकर ग्रुप फोटो ली गयी जिसमे मैंने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा रखे हैं और एक तस्वीर में मेरे सामने खड़ी टाइम और एकाउंट्स ऑफिस की महिलाओ के कंधे पर रखी है। उसके कुछ दिन बाद दिवाली के दिन मैं जब अपने ऑफिस कमरे से निकल रही थी तो चितले बाकि सभी डिपार्टमेंटल हेड्स के साथ परचेस डिपार्टमेंट की तरफ जा रहा था। मुझे देखते ही उसने कहा , तुम नौकरी पर जॉइन करने के बाद मुझसे मिलने क्यों नहीं आयी ? तुम सिर्फ इधर उधर ताकती रहती हो। मैं तुमसे बहुत खफा हूँ। तुम मेरी आशा के अनुरूप काम नहीं कर रही हो।मैंने उनको याद दिलाया कि उन्होंने कहा था वह मुझे मिलने के लिए बुलाएँगे। मैंने उनके p.a से कई बार बात की थी पर हमेशा आप बिजी हैं कहकर मुझे टाल दिया। तुम मुझे फ़ोन कर सकती थी। मुझे दोपहर को उनसे मिलने के लिए कहकर चितले बाकि लोगों को साथ लेकर mis डिपार्टमेंट में चले गए। दोपहर को जब चितले से अक्कर मिली तो उन्होंने कहा कि मैं बहुत unsocial हूँ। दशहरे में सब डिपार्टमेंट्स के चक्कर नहीं लगाय जब मैंने कहा कि मैंने डिपार्टमेंट्स के पूजा में शरीक हुई थी और आज भी सबको जाकर दिवाली की बधाई देकर आई। तो उन्होंने स्कूल का राग छेड़ा तो उनको मैंने हकीकत बताई। मैं समझ गई थी कि वह ग्रूप डांस में अंश ग्रहन नहीं करने के लिए कह रहे थे। मैंने उनसे अपने सांस की बीमारी के बारे में बताया , जोकि जाहिर सी बात थी और मैं उनसे बात करते हुए भी हाँफ रही थी। उन्होंने मुझसे हर महीने एक बार मिलकर ट्रेनिंग का ब्यौरा देने को कहा। मैंने उनसे क्वालिटी अवार्ड में फैक्ट्री के शामिल होने की बात करने की कोशिश की तो उन्होंने यह कहकर टाल दिया किउनको लंच पर जाने के लिए देर हो रही है। मैंने हमेशा की तरह उनके साथ हुए मीटिंग का ब्यौरा minutes of meeting का डॉक्यूमेंट बनाकर उनको और उनके pa को ईमेल से भेज दिया।
१०. मेरी तबियत बहुत खराब थी। सांस की तकलीफ के कारण मेरी आवाज़ भी नहीं निकल रही थी। हिंगसिआ के दफ्तर का पेओन आकर मेरे सामने एक चिट्ठी फ़ेंक जाता है कहकर कि मेरे लिए है। वह चिट्ठी H.R की है जिसमे मुझे car allowance का छः हज़ार रुपए पाने के लिए शर्तें मंज़ूर करनी पड़ेंगी का ज़िक्र है जो डिप्टी मैनेजर दुकांइआ ने भी बताया था। उसने कहा था कि मैं कार लाकर दिखा दूँ कंडीशन के अनुसार। कुछ ही देर बाद हिंगसिआ मेरे ऑफिस में आये और कहा आपको तो सब जानकारी लिखित में चाहिए इसलिए जानकारी लिखकर भेज दी। allowance लेने के लिए तो गाड़ी यहाँपर लाकर ऑफिस आने ऑफिस के काम से कहीं जाने के लिए इस्तेमाल करना पड़ेगा। मैंने जब दुकानिआ के कहे का ज़िक्र किया तो हिंगसिआ ने उखड़कर कहा आप बहुत आगे करती हैं। कहकर उठकर ऑफिस कमरे के बाहर निकल गए। मैं चिट्ठी लेकर उनके ऑफिस गयी और चिट्ठी उनके सामने रखते हुए बड़ी मुश्किल से सुनी जाने लायक आवाज़ में कहा "मुझे कार अलाउंस नहीं चाहिए क्योंकि मैंने यह नौकरी पर कार्यरत होने से पहले परिवार के लिए खरीदी थी। परिवार में सब बुज़ुर्ग लोग हैं और शहर से दूर रहते हैं। मेरी बहन वह गाड़ी चलती है और घर के लोगों को आने जाने और ज़रुरत का सामान लाने में मदद करती है। ना ही मैं ऑफिस के काम के लिए गाड़ी का खर्चा मांगूंगी। उनको धन्यवाद कहकर अपने कमरे में आई और HR पोर्टल के सहारे भाई दूज की और एक और दिन की छुट्टी के लिए अप्लाई किया पोर्टल के अनुसार मेरी उस साल के लिए बस एक और दिन की छुट्टी बचती थी। जब घर पहुँची तो बहुत बीमार पड़ी। डॉक्टर ने कम से कम दो दिन और आराम करके फिर ऑफिस वापस जाने को कहा। मैंने दांडे और H.R. के दोनों मैनेजर को ईमेल द्वारा मेरी छुट्टी बढ़ाने की अर्ज़ी भेज दी। उसके कुछ ही देर बाद फैक्ट्री से फ़ोन आया। दांडे का फ़ोन था। उसने मुझसे बात करनी चाही और मेरी आवाज़ सुनकर उसे यकीन हो गया कि मेरी तबियत सचमुच खराब है। उसने मुझसे कहा कि ऑफिस लौटने पर सबसे पहले उससे मिलूँ। कहकर उसने फ़ोन रख दिया।
पिता : तुमने अपनी माँ से ऑफिस में घटनाओं के बारे कुछ कहा था ?
पुत्री : माँ ने मुझसे मेरी मानसिक परेशानी जिसके कारण शारीरिक कष्ट हो रहा है, उसके बारे में पूछा था। तो मैंने बस इतना ही कहा था कि मुझे सब कार्यक्रमों में शामिल ना कर मुझे अकेले ही काम करने के लिए छोड़कर भी सब खफा हैं और कार अलाउंस ना लेने के कारण से भी अवगत कराया था।
११ .जब मैं ऑफिस लौटी पाटिल और मिश्रा जी को ट्रेनिंग के काम काज संभालते हुए पाया। दांडे ने मुझे बुला भेजा। मेरी तबियत अभी तक पूरी तरह सुधरी नहीं थी. मेरी आवाज़ अभी भी साँस की तकलीफ के कारण रुंधी हुई थी। दांडे ने मुझे देखते ही कहा , आपका बर्ताव अच्छा नहीं है। मुझे पिंगसिआ ने सब कुछ बताया है। अगर आपने इस्तीफा नहीं दिया तो मुझे आपके खिलाफ action लेना होगा। मैंने जब दांडे से पूछा कि पिंगसिआ ने क्या बताया है और मुझसे इस्तीफा मांगने का कारण समझने का अपनी बात बताने का पूरा हक़ है। तो दांडे ने तुनककर कहा वह मेरी चिकनी चुपड़ी बातें नहीं सुनना चाहता। वह मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता और उसने मुझसे ऑफिस से जाने को कहा। जैसे ही मैं अपने ऑफिस कमरे में लौटी तो एक technical training के external ट्रेनर का और सॉफ्ट स्किल्स ट्रेनिंग के एक्सटर्नल ट्रेनर का फ़ोन आया। दोनों ने परोक्ष रूप से जता दिया कि मैं उनको पाटिल और दांडे के p.a के contact नंबर दे दूँ। मैंने ऑफिस मैं काफी फाइल कमरे से नदारद पाए। मिश्रा से पूछने पर उसने बताया कि उसने वह फाइल पाटिल को दिए थे। सारा दिन मैंने ऑफिस के सभी कार्यक्रम और फाइल वगैरह up -to -date किये दिन के आखिर में मेरा इस्तीफा मैंने दांडे , चितले , पिंगसिआ और दुकनया को ईमेल कर दिया। अगले दिन पिंगसिआ ने मुझे दांडे और चितले द्वारा मेरे इस्तीफे की मंज़ूरी का समाचार दे दिया। उसने कहा की पंद्रह दिनों का मेरा notice period होगा पर आज का दिन मेरा ऑफिस में आखरी दिन होगा क्योंकि दांडे मुझे ऑफिस में नहीं देखना चाहते। उस दिन annual quality awards ka कार्यक्रम था , जिसमे ग्रुडांस में मैंने हिस्सा लेने से मना कर दिया था।
पिता : तुम्हारा अगर फाइनल इंटरव्यू चितले ने नहीं किया था तो तुमने चितले से इस सन्दर्भ में बात करने के लिए संपर्क नहीं किया ?
पुत्री : मैंने किया। उनको मेल भी किया और उनके सेक्रेटरी से अपॉइंटमेंट भी मांगी। उसने बताया कि साहब बाहर गए हैं एक दो दिन बाद मिलेंगे। तो मैंने एक दो दिन बाद ऑफिस में आकर संपर्क करने का इरादा किया।
१२. दो दिन मैं रोज़ वोडाफोन के ऑफिस जाती उनसे मेरे फ़ोन नंबर में हुई गड़बड़ी को ठीक करवाने। दूसरे दिन मैं जब वोडाफोन के दफ्तर में उनके फ़ोन सेवा में हो रही गड़बड़ी ठीक करवा रही थी, तब पिंगसिआ का पेओन वहाँ आया और मुझे देखकर उसने कहा कि मेरे यानि training ऑफिस कमरे के दरवाज़े पर से मेरा name plate हटा दिया है। मैंने उसे केवल उतना ही कहा कि मैं आज ऑफिस जाऊंगी ऑफिस के काम से। ऑफिस पहुँची तो पाया कि मैंने जितने भी नए और मिश्रा से विमर्श कर जितने नए फाइल (केवल दस फाइल ) और कागज़ी दस्तावेज रखे थे उनको निकालकर एक कोने में कुर्सी पर रखे हुए हैं। जबसे सेफ्टी डिपार्टमेंट वाले ट्रेनिंग ऑफिस का लैपटॉप कंप्यूटर ले गए थे वह अभी तक वापस नहीं आया था। मैंने जब मिश्रा से इसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि सेफ्टी वालों ने उसे लैपटॉप वापस किया था , दांडे ने उसे पाटिल को देने के लिए कहा है। मैंजब अपने बाकि ट्रेनिंग के कार्यों का लेखा जोखा काम समेटकर दांडे को देने गई तो उन्होंने गुस्से में अपनी पतलून पकड़कर उसे खींचते हुए कहा कि उन्होंने जब कह दिया है वह मेरी शक्ल नमैं उनके दफ्तर हीं देखना चाहते तो मैं उनके दफ्तर में क्यों हाजिर होती हूँ। मैं फिर चितले के दफ्तर गयी और उनके सेक्रेटरी ने मुझे उनसे दोपहर लंच के बाद मिलने को कहा। मैं लंच करने कैंटीन में बैठी तो चितले भी लंच करने वहाँ आये। उन्होंने मुझे लंच के बाद सीधे उनके दफ्तर जाकर उनसे मिलने को कहा। उन्होंने senior management के लिए खाने की टेबल के तरफ जाते हुए, बिना रूककर मुझसे बात करने के लिए , मुझसे बात यह बात कही. मैं खाना खा रही थी इसलिए अपनी जगह से उठी नहीं। सीनियर मैनेजमेंट के लिए अलग टेबल थी कैंटीन में पर मैं वहां बैठती नहीं थी। वहाँ बैठे सभी लोगों ने मुझे घूरकर देखा, क्योंकि चितले को देखकर मैं अपनी जगह से उठीनहीं। चितले से उनके दफ्तर में मिली तो मैं उस हरकत के लिए माफ़ी मांगी तो उन्होंने हंसकर बात को टाल दिया। उन्होंने बात शुरू की मुझपर इलज़ाम लगाने के लहज़े से। मैंने उनकी सभी बातें सुनी और फिर मैंने उनसे कहा कि मैं माफ़ी मांगकर अपना कथन शुरू करती हूँ। मैंने सिर्फ इतना ही पूछना है कि जिसको एक साल के प्रोबेशन पर रखा जाता है उसे क्या केवल डेढ़ दो महीने में जांच परख लिया जाता है बिना उसे mainstream फंक्शन्स में सम्मिलित कर ? उसपर आरोप लगाया जाता है और उसे अपना पक्ष सबके सामने रखने का मौका नहीं दिया जाता। मैं केवल पैरेंट कंपनी के साथ हुई मीटिंग में ही सम्मिलित हुई थी। उसके बाद तो और कोई मीटिंग मैं सम्मिलित नहीं किया गया। ट्रेनिंग के लिए ना सुनियोजित और सुघड़ तरीके से ट्रेनिंग नीड एनालिसिस होती. एक ही ट्रेनिंग में लोग दो तीन बार शामिल होते हैं और काफी लोगों ने तोट्रेनिंग में कभी हिस्सा ही नहीं लिया। चितले का कहना था की दांडे इसलिए खफा था कि मैं बहुत ईमेल भेजती थी और बार बार ट्रेनिंग के विषय में विमर्श करने जाती थी तो मैंने उन्हें बताया कि जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तब ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के फाइल दस्तावेज़ और बजट ना के बराबर थे। मैं जो कुछ कर रही थी उसका सभी लेखा जोखा दांडे को ईमेल के माध्यम से इत्तेला करती क्योंकि बजट ना होने के कारण उनसे अप्रूवल लेकर काम करना था। दांडे के ऑफिस के सामने हमेशा लोग खड़े उनसे मिलने का इंतज़ार करते हुए पाती थी। तो चितले ने दबी आवाज़ में कहा कि दांडे का वर्कर और अफसरों से मिलने का वक़्त लंच टाइम से पहले का है। उन्होंने बात आई गयी कर मुझे अगले दिन उनके दफ्तर में उनके साथ चाय पीने का न्योता दिया पर मैंने उन्हें धन्यवाद का ईमेल कर चाय के न्योते से इंकार कर दिया यह कहकर कि उनका सौहार्द्य ही बहुत है मेरे लिए। अगले दिन मेरा दफ्तर में आखरी दिन होगा, इसका इत्तला मैंने पिंगसिआ को दे दिया। नौकरी के आखरी दिन तक मैंने जाकर दांडे से मुलाकात नहीं की। कम से कम , मैं अपने स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती।
१३
पिता : कैंटीन में सीनियर मैनेजमेंट की अलग खाने की मेज़ की बात समझ नहीं आई ?
पुत्री : मैंने जब नौकरी ज्वाइन करी तो मुझे भी मालूम नहीं था। जब खाना लेने के लिए लाइन में लगी तब पता चला कि कुछ डिशेस सीनियर मैनेजमेंट के लिए है और उसके लिए ज़्यादा रकम का कूपन खरीदना पड़ता है जो कूपन बेचनेवाले ने मुझे बताया नहीं था। जब चितले और पिंगसिआ ने मुझे पैरेंट कंपनी मीटिंग के बाद टॉप मैनेजमेंट के साथ बैठकर लंच करने को कहा तो मैं हमेशा की तरह साधारण लोगों के लिए कुर्सी और मेज़पर बैठकर मेरे लंच के कूपन देकर खाना खाया। आखरी दिन जब मैं H.R का एग्जिट इंटरव्यू डॉक्यूमेंट भरने गयी तो मेरे पास बचे चार कूपन में से दो कूपन पिंगसिआ को देकर उनसे वे मिश्रा जी को देने के लिए कहा। उनको मेरा अनुरोध अच्छा नहीं लगा और उन्होंने जब कूपन पर तारिख देखि तो वह तीन महीने पहले का था। उन्होंने तभी कैंटीन कांट्रेक्टर के कर्मी को बुलाकर दिखाया और उन कूपन की जगह मुझे पैसे देने को कहा। फुल एंड फाइनल हैंडओवर का पूरा ब्यौरा ईमेल के माध्यम से पाटिल, मिश्रा, H.R , दांडे और चितले को दिया।
पिता : तुमने जब नौकरी ज्वाइन करी और जब छोड़कर रवाना हुई तब उन्होंने तुम्हारे आने जाने के लिए गाडी का प्रबंध नहीं किया ?
पुत्री : ना उन्होंने किया और ना ही मैंने उनसे कभी अपने लिए गाड़ी की सुविधा नहीं मांगी ; केवल जब बेहेन और बुआजी आई थीं , उनको स्टेशन और लाने के लिए गाडी ली थी। ट्रांसपोर्ट विभाग के हेड ब्रिगेडियर दामले से अनुरोध कर यह सुविधा ली थी। बहुत बार उनकी मौजूदगी में मैं दांडे ज़ी से उनके दफ्तर में मिलकर आती थी ट्रेनिंग के खर्च सम्बन्धी विमर्श करने। फैक्ट्री का क्वार्टर छोड़ने से पहले उनके दिए हुए फर्नीचर का पूरा ब्यौरा उनके स्टोर डिपार्टमेंट से लोग आकर लेकर गए। जितने दिन मैं क्वार्टर में रही उसका किराया मेरी तनख्वा से कटा।
१४ जब फुल एंड फाइनल सेटलमेंट का चेक उन्होंने भेजा तो एक दिन के बजाय तीन दिन की छुट्टी का पैसा काटा। मैंने जब ईमेल के जवाब में उनसे कारण पूछा तो टाइम ऑफिस के हेड ने फोन कर और अपने सहकर्मी के सहारे समझाने लगे कि मैंने सिक लीव लिया था जो प्रोबेशन पीरियड में होता नहीं है. तो मैंने उनसे कहा कि जब मैंने HR पोर्टल द्वारा छुट्टी की अर्ज़ी भरी तभी जाकर छुट्टी मिली और पोर्टल में सिक लीव का व्यवधान ही नहीं है। तो उन्होंने यही कहा कि मैं बहुत तर्क और बहस करती हूँ और बहस में वह पड़ना नहीं चाहते कहकर उन्होंने फोन काट दिया। मैंने जवाब में ईमेल लिखा जिसमे सबसे उनप्रोफेशनल बात जो उन्होंने की , फोन पर मेरे प्रश्न का जवाब देने की, जबकि मैंने ईमेल के माध्यम से प्रश्न किया था। उस ईमेल में मैंने मेरे प्रति हुए सभी अन्यायपूर्ण उनके आचरण और कार्यों का भी उल्लेख किया। मैंने वह ईमेल चितले , दांडे , HR और time office को भेजा। वह ईमेल किसीने डिलीट कर दिया है मेरे ईमेल से। सबसे अजीब बात यह थी कि फैक्ट्री के एक वरिष्ठ अधिकारी, गुप्तजी ने रिलायंस के किसी वरिष्ठ अधिकारी, लालवानी जी के बेटे का फैक्ट्री में प्रोजेक्ट वर्क करने का प्रबंध करने को कहा था। मैंने उनके ईमेल का जवाब ईमेल से ही दिया था। फल स्वरुप , मुझे गुप्तजी और लालवानी , दोनों ने ही फ़ोन किया था। लालवानी ने अपने ओहदे और हैसियत का रौब डालने की कोशिश कि तो मैंने उनसे विनम्र लहजे में बताया कि बहुत छात्र आते हैं इंजीनियरिंग का project work करने। उनके बेटे के लिए भी सभी मुनासिब व्यवस्था की जाएगी बाकि सभी छात्रों की तरह। मेरे रिजाइन करने के अगले दिन लालवानी ने फ़ोन करके इत्तेला किया कि उनका बीटा अगले महीने की चार तारिख से प्रोजेक्ट वर्क करने फैक्ट्री आएगा। वही दिन मेरा फैक्ट्री में आखरी दिन था। मैंने यह सब सूचना पाटिल और दांडे समेत hr को भी दी थी, ईमेल के ज़रिये। मेरे आखरी दिन मैं दांडे से नहीं मिली कारण मेरा स्वाभिमान है जिसके कारण मैं किसीके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचा सकती।
१५ एक साल बाद फैक्ट्री से बोनस के नाम का चेक आया और मैंने उसे लौटा दिया यह कहकर कि जब मेरे छुट्टी के पैसे कटे हैं, जिसका मतलब मैंने जितने दिन काम करने चाहिए थे बोनस पाने के लिए तो मेरा हक़ नहीं बनता बोनस लेने का इसलिए मैं चेक लौटा रही हूँ। मैंने चेक डिमांड ड्राफ्ट के रूप में लौटाया यह कहकर कि वह दुबारा चेक भेजने का कष्ट नाकरें।
पिता : तुम्हारे अनुसार यह सब गलतियां तुमने की हैं।
पुत्री : आपने पूछा कि मैंने क्या गलतियां कि तो मैंने आपको बताया
पिता : बेटी, तुम जानती हो कि all ideological wars are won with the help of the mercenaries. All wars are ideological wars . तुम्हें याद होगा कि अमेरिका के महान लेखक hemingway एक mercenary soldier की हैसियत में Spanish Civil War में लड़े थे. तुम यह भी जानती हो की mercenary soldiers पैसे के लिए लड़ते है, कोई ideology के लिए नहीं। अब मैं तुमसे कुछ सवाल करूंगा उनके जवाब तुम देना :
१. तुमको नहीं लगता कि तुम स्वसत्याकामी हो जो सबको शायद ना भाता हो ?
२ तुम हद से ज़्यादा संवेदनशील नहीं हो , जिसके कारण तुम खुद कष्ट पाती हो ?
३. तुम अपने आपको ग़मों से बोझिल रखती हो ?
४. तुम इन सब कारणों से जल्दी बोझिल होकर बौखला जाती हो ?
५ . तुम संवेदनशील होने के कारण मेरे और तुम्हारी माँ के बीच तकरार का दोहरा असर तुमपर पड़ता रहा है ?
६ . इस असर के कारण तुम्हारा व्यक्तित्व डरपोक और दब्बू किस्म का हो गया है ?
७ तुम्हारे व्यक्तित के कारण तुम हमशा मानसिक पशोपेश से घिरी रहती हो जिसका असर तुम्हारे स्वास्थ पर भी पड़ता है ?
८ इन सबके कारण तुम खुलकर बात नहीं कर पाती हो ?
९. तुमको नहीं लगता कि वह तुमको गाड़ी ऑफिस आने जाने के काम में लाने का कहकर तुमको वहां पर स्थाई रूप से रहकर कार्य में रमने का संकेत दे रहे थे ?
१० तुमको नहीं लगता कि जो हुआ भले के लिए हुआ ? तुम्हारे भले के लिए क्योंकि तुम्हारा हुनर तो तुम वहां प्रयोग नहीं कर पा रही थी जब ट्रेनिंग का काम फैक्ट्री के जनरल म,मैनेजर और टेम्पररी हैसियत में काम कर रहे क्लर्क कर ले रहे थे। तुम कितना खुद ट्रेनिंग करती ?
११ तुम खुद अपना लिखा हुआ ब्यौरा पढ़कर देखो , फैक्ट्री के कार्यकर्ता ट्रेनिंग को लेकर कितने संजीदा थे ?
१२ तुमने जो मिश्रा और प्रोडक्शन हेड के p.a. के सहायता से ट्रेनिंग का लेखा जोखा तैयार किया, उसको सबके समक्ष रखने का अवसर तुम्हे मिला ?
१३ तुम्हारे मूल्य बोध और तुम्हारे सहकर्मियों के मूल्य बोध में समानता और अंतर क्या थे ?
१४ तुम्हारे और तुम्हारे सहकर्मियों में जीतने और मिलकर कार्य करने की परिभाषा में समानता थी या अंतर था ?
१५ . अंग्रेज़ी में मैं कहूंगा "do not let your beliefs enslave you . " तुम्हारे फैक्ट्री के कार्य के तज़ुर्बे से इस विषय में तुम क्या कहना चाहोगी ?
१६ तुम जब वहां कार्य रत थी तब तुमको और नौकरी के संधान मिले थे ? तुमने उनको स्वीकारा था ?
१७ . तुम यह सब किस भाषा में लिखोगी ?
पुत्री : पिताजी, मैं आपके सभी सवालों का जवाब दूँगी। मैं आपके आखरी सवाल का जवाब पहले देती हूँ। मैं यह सब हिंदी , मेरी मातृ भाषा में लिखूंगी क्योंकि दांडे सभी official notice और circular हिंदी में ही जारी करते थे। पिताजी , पर आप मेरे लिए इतना क्यों सोचते हैं। आपको खोने के बाद मैं इस नौकरी में कार्य रत हुई। आपका ख्याल आता था और मन बहुत बोझिल रहता था। मैं यह भी जानती हूँ कि आप अपने सभी ऑफिस और व्यावहारिक कार्यों में पारदर्शिता रखते थे। पर आप सचमुच मेरे लिए इतना क्यों सोचते हैं ?
पिता : बेटी , मुझे मालूम है मेरे जाने के बाद तुमपर दया दृष्टि रखकर नौकरी दी गयी। तुमने सब तज़ुर्बे और उन सब संस्थानों के कार्यों में कमियों के तेरह कारण भी लिखे हैं जो कुछ लोगों ने माना और बाकी लोगों ने चुप्पी साधकर स्वीकार किया है। मेरा तुमसे यह वार्तालाप, यह मेरा निहित स्वार्थ नहीं है। तुम इस सत्य को नकार नहीं सकती कि तुम मेरा ही अंश हो। मैं तुम में और मैं तुम में जिन्दा हूँ।
(curative questioning method of mentoring.)