इसका सीना चीरकर फसल हम उगाते हैं।
इसकी गोद में खेलते, हँसते, रोते, सोते और गाते हैं।
इसकी श्वास से चलती है हमारी साँस।
इसका रक्त बन जल की धारा छेड़े जीवन का साज़।
इसके सत्व में अग्नि दे या हर ले जीवन।
इससे हमे मिली प्राकृतिक धरोहर :
जीव , घन , पर्वत , जलाशय और वन।
इसका खनन कर हम लेते हैं खनिज सा अमूल्य धन।
क्रोध में इसपर थूकते और दंभ में इसे ठोकर मारते हैं।
अपने महत्वकांशी पाँवों से इसे रौंदकर
इसपर हम अपना हक जमाते हैं।
इसको देते हैं हम चुनौती,
और मानवता की तकनीकी और औद्योगिक प्रगति बताते हैं।
हमारे अत्यचार सहकर जब यह थर्राती है ,
तो वह हमारे लिए प्राकृतिक विपदा बन जाती है।
जन्में हैं इसी से, मरकर इसी में समा जाएंगे।
बूझोतो यह कौन है...
जी हाँ , यह है धरा हमारी, जननी यह हमारी है।
इसका भाग बँटवारा कर,
इसको दूषित और नष्ट कर,
क्या हम निजात पाएंगे ?
हमारे इस आशियाने को उजाड़कर,
क्या हम खुशहाली से जी पाएंगे ?