सुबह का नाश्ता कर इंटरनेट पर आये हुए ईमेल पढ़ने के इरादे से संवेदना ने कंप्यूटर ऑन किया। अचानक उसका पुराना ईमेल कंप्यूटर की स्क्रीन पर उभर कर आया। कई सालों से यह ईमेल एड्रेस उसने इस्तेमाल नहीं किया था। यह ईमेल एड्रेस उसकी मामी ने उसके विवाह के संबंधों के लिए इंटरनेट पर मौजूद मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर उसके प्रोफाइल में पत्राचार के लिए बनाया था।
एक अरसे बाद संवेदना ने उस ईमेल बक्स को खोला। उसने तो सभी मैट्रिमोनियल वेबसाइट से अपने प्रोफाइल निकाल दिए थे। उन वेबसाइट्स से कोई ईमेल आने की गुंजाइश नहीं थी। उसने ईमेल बॉक्स मैं बैंकों, इन्शुरन्स कम्पनियों , प्रॉपर्टी बेचने वालों, टेलीफोन कंपनियों और सट्टे बाजार के एजेंट्स के इश्तेहार भरे ईमेल पाए। संवेदना मन ही मन मुस्कुरायी कि इन कम्पनिओं ने यह सब चिट्ठियाँ पूँजीपतिओं को भेजनी चाहिए। यह सोचते हुए वह ठहाके लगाकर हँसने लगी और यादों के बवंडर ने मानो उसे वर्तमान से अतीत में पहुँचा दिया; अब से बीते दस सालों में. खासकर उन दिनों में, जब वह बम्बई में नौकरी कर रही थी। २००८ और २००९ में हुई अर्थनैतिक उथल पुथल के चलते उसकी नौकरी चली गयी। २०१० में उसे बम्बई वाली नौकरी बड़े मुश्किल से मिली थी। बम्बई में चार बैडरूम वाले फ्लैट में रहने वाली तेरह पेइंग गेस्ट में से एक थी।
संवेदना चालीस वर्ष के उम्र की देहलीज़ पार कर चुकी थी। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। पिता ने अपना कार्यकाल कागज़ बनाने की फैक्ट्री में बिताया और माँ ने गृहस्ति और उसे संभाला। वह एक साधारण सी लड़की अनुशासन में पली बढ़ी। उसके माता पिता ने उसे हमेशा ज़िन्दगी और समाज की विषमताओं से संभालकर रक्खा। संवेदना की माँ की ख्वाहिश थी कि बेटी पढ़ लिखकर अपना गृहस्त जीवन बिताये, पर पिता चाहते थे कि वह स्वावलम्बी हो।
नौकरी से अवकाश पाने से पहले संवेदना के पिता ने उसके मामा के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की पर कामयाब ना हो पाए। परिवार को आर्थिक तंगी और विषम परिथितिओं का सामना करना पड़ा। संवेदना पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने लगी। वह स्कूल में पढ़ाने लगी। उसकी वेतन घर चलाने में काम आती । उसकी माँ बहुत दुःखी रहती संवेदना अपने माता पिता की कुंठा को भली भांति समझ पाती और आर्थिक परेशानियों के कारण घर में कलह होना स्वाभाविक था। इस विषम परिस्थिति का असर संवेदना पर पड़ा। उसने ठान लिया कि वह विवाह नहीं करेगी। वह और अच्छी नौकरी के लिए कोशिश करने लगी। संवेदना की माँ ने पूरी कोशिश की उसके लिए योग्य वर ढूंढने की और संवेदना से ज़्यादा उसकी माँ मायूस हुई, पर उन्होंने आस नहीं छोड़ी। साधारण सी दिखने वाली, शांत, सुशील, गंभीर व्यक्तित्व वाली संवेदना दुनिया के दांव पेंच से अनजान अब ज़िन्दगी के जद्दो जहद से जूझने लगी। नैतिकता, सतकर्म, सत्यनिष्ठा और लगन से कार्य करने में विश्वास करने वाली संवेदना दफ्तर की राजनीति, चापलूसी, चाटुकारिता, सहकर्मियों से कार्य में प्रतिस्पर्धा कर उनका अपनी उन्नति और कामयाबी पाने के लिए प्रयोग करना नहीं जानती थी। वह अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी। कारणवश, वह अपने सहकर्मियों की तरह तरक्की की सीढ़ियों को नहीं चढ़ पायी पर उसका सरल मन यही सोचकर खुश होता कि उसने औरों का भला किया है नुक्सान नहीं, और ज़िन्दगी के अंधड़ से निरंतर जूझती रही।
बम्बई के दफ्तर में उसके सहकर्मी उन छात्रों की उम्र के थे जिन्हे उसने स्कूल में पढ़ाया था। अब वह उसके अफसर भी थे, पर संवेदना ने परिस्थितियों के साथ समझौता कर अपना कार्य करती रही.
पेइंग गेस्ट में भी लड़कियां उससे आधे उम्र की थीं। वह सबके साथ बनाकर चलने की कोशिश करती पर उनकी बेबाक बातें उसे चुभती थीं. संवेदना को ना दफ्तर में और ना ही पेइंग गेस्ट हाउस में सुकून से काम कर और रह पा रही थी. उसके कार्यकाल में शुरू शुरू में उसके सहकर्मी उससे मज़ाक कर कहते थे कि वह "मैरिज मटेरियल" है। इतना संवेदनशील होकर कॉर्पोरेट क्या कहीं पर भी ना काम कर सकता है और ना ही करने दे सकता है।
संवेदना के परिवार जनों ने महसूस किया कि उसका विवाह ही उसके दुःखों का समाधान होगा। संवेदना से संपर्क के लिए उन्होंने उसका ईमेल एड्रेस बनाकर उन सब मैट्रिमोनियल साइट्स में दिया जहाँ उसका प्रोफाइल बनाया था. उन्हें क्या मालूम था कि उनकी यह कोशिश संवेदना के लिए और भी बड़ी आफत बन जाएगी। समाज का दस्तूर है सरल व्यक्ति का फायदा उठाना उसका मज़ाक उड़ाना और उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचना। अगर वह प्रतिवाद करे तो उसे हठी और दाम्भिक घोषित कर देना।
संवेदना पेइंग गेस्ट हाउस के एक कमरे में और दो लड़कियों के साथ रहती थी। दोनों ही उसकी छात्राओं के उम्र की थीं पर वह उनके साथ मिलजुलकर रहती और उनके कर्मक्षेत्र और परिवार के कारण हो रहे उनके दुःख और कष्ट सुनती और समाधान पाने में मदद करती। कुछ समय पश्चात संवेदना ने पाया कि दोनों लड़कियाँ उसका फायदा उठाने लगी थीं। यह बात उसने उन दोनों को महसूस होने नहीं दिया।
अब संवेदना को मैट्रिमोनियल साइट्स पर बने जाली प्रोफाइल्स से ईमेल और हो हो Hi5 नामक सोशियल नेटवर्क साइट से चिट्ठी और मेसेज आने लगे। पहले उसने उन्हें सच्चा समझकर उनको उत्तर दिया और पाया कि वे उससे स्मगलिंग, मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गैर कानूनी काम करवाने के इरादे से संपर्क साध रहे थे। उनमें से बहुतों ने उससे पैसे मांगे। कि मलेशिआ में उनका करोड़ों का प्रोजेक्ट अटका पड़ा है और वह तीन चार लाख रूपये की आर्थिक मदद करे तो वे वहाँ की सरकार से उनका बकाया पैसा निकलवा सकते हैं। कुछ उसके साथ भद्दी बातें करने के लिए फ़ोन करते। संवेदना चालीस वर्ष की संवेदनशील औरत थी। इन सब वारदातों ने उसे झकझोरकर रख दिया। उसका माथा ठनका जब उसने फ़ोन नम्बरों की जांच की और पाया कि विदेशी नंबर फ़र्ज़ी थे और जो अपने आपको देश के अलग शहरों से फ़ोन कर रहे थे , दरअसल उनका फ़ोन नंबर बॉम्बे, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश के थे।
संवेदना मानसिक रूप से तब और टूट गयी जब उसे समझ में आया की पेइंग गेस्ट में रहने वाली कुछ लड़कियां बोरीवली में रहने वाले उनके भाइयों, मंगेतरों और दोस्तों के साथ मिलकर उसके साथ भद्दे chat करते थे। यह उसने तब भाँपा जब कुछ लड़कियाँ बहाने से उसके कमरे में आयीं और ठीक उसके पीछे खड़े होकर chat स्क्रीन को घूर घूरकर देखने लगीं। संवेदना ने जानकार बिना हड़बड़ाए कंप्यूटर ऑफ़ करने की गुस्ताखी नहीं की। उसने उन लड़कियों से उनके आने का कारण पूछा और उनके अलग अलग जवाबों ने उसके शक को यकीन में बदल दिया।
संवेदना की माँ ने भाँप लिया था कि उनकी बेटी बहुत कुंठित है पर वह उन्हें बताती नहीं। उन्होंने संवेदना के पास जाने का मन बनाया। दिसंबर का महीना था और माताजी सुबह बम्बई अपनी बेटी के पास पहुँच गयी। ज़िन्दगी के थपेड़ों ने उन्हें काफी हिम्मतवाली महिला बना दिया था। उन्होंने जब अपनी बेटी को देखा तो उनकी अंतरआत्मा आर्तनाद करने लगी। उनकी बेटी ग़मों के बोझ तले दबकर मानो जीना ही भूल गयी थी। जिस कंपनी के लिए संवेदना काम करती थी वह बंद होने की कागार पर थी। संवेदना ने उसकी माँ का अपने कमरे में रहने का इंतज़ाम कर दिया था।
इकत्तीस दिसंबर के दिन संवेदना ने अपनी चुप्पी तोड़ी और अपनी माँ को अपने सभी अनुभव बताये। उसकी माँ हतवाक हो एकटक अपनी बेटी की ओर देखती रही। समाज की जिस नृशंसता से उन्होंने अपनी बेटी को बचाने की कोशिश की थी, उनकी बेटी ने साल भर में सब कुछ अनुभव कर लिया था। बेटी की ज़िन्दगी की विडम्बना को वे भली भांति महसूस कर रहीं थीं अनायास उनकी नज़र कमरे से लगी बड़ी बालकनी पर पड़ी. पेइंग गेस्ट हाउस का फ्लैट इमारत के बारहवें माले पर था। अनायास उन्होंने कहा "अगर कोई इस बालकनी से नीचे गिरेगा तो उसका बच पाना असम्भव है। संवेदना , जो अब उदास और खोई खोई सी रहती थी , उसके माँ की कही बात उसके मन में दर्ज़ हो गयी। बार बार संवेदना के मन में उसके माँ की बात गूंजती रही।
रात को सभी नए साल का जश्न मनाकर सोने चले गए। संवेदना बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी ही कर रही थी कि उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बज पड़ी. हड़बड़ी में उसने यह सोचकर फ़ोन उठाया की घर से मामा -मामी नए साल की शुभ कामनाएं देने के लिए फ़ोन कर रहे होंगे। पर फ़ोन पर उसे कुछ सी पहचानी आवाज़ सुनाई दी। बौनी चटर्जी शराब के नशे में धुत उसे नए साल के लिए फ़ोन कर रहा था। संवेदना ने उस फ़ोन नंबर की भी तहकीकात की थी वह नंबर भी जाली था। चटर्जी साहब ने प्रोफाइल फोटो में इलेक्ट्रॉनिक सिंथेसाइज़र की तस्वीर लगा रखी थी. उसके अनुसार, वह सालों से स्विट्ज़रलैंड में रह रहा था, पर उसकी अंग्रेजी से उसकी बात झूठ साबित होती थी। जब चटर्जी साहब ने बंगाली में भद्दी बातें करने लगे तो संवेदना ।संवेदना ने उसे दोबारा फ़ोन ना करने को कहा; और यह भी कहा कि वह पुलिस से शिकायत करेगी अगर उसने दोबारा फ़ोन किया।
संवेदना चुप चाप रोती रही. भविष्य पूरा अंधकारमय नज़र आ रहा था उसे। दुनिया और लोगों पर से उसका भरोसा उठ गया था। संवेदना को पूरी दुनिया और सभी लोग मतलबी और क्रूर लगने लगे थे। पर वह अपने ज़िद पर कायम थी कि वह कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगी। अब उसे यह एहसास होने लगा था उसकी ज़िद उसके दुःखों का कारण है। तभी उसके मन मस्तिष्क में उसकी माँ की कही हुई बात गूंजने लगी "इस बालकनी से अगर कोई नीचे गिरेगा तो उसका बचना असंभव है!"
अनायास संवेदना अपने बिस्तर से उठी और बालकनी के रेलिंग के पास जाकर रुकी। मन में हताशा के अंधड़ में उन पलों की यादें बिजली की तरह कौंधने लगी जब वह उन झूठे और मक्कार लोगों पर यकीन कर इसी बालकनी में खड़े होकर उनके फ़ोन का जवाब देती थी। आंसुओं की धारा अविरल उसकी आँखों से बहने लगी। सिसकियों ने उसके शरीर को झकझोर दिया था। रुंधे हुए गले से सिसकियों की प्रतिध्वनि को रोकने की कोशिश करते हुए उसने मुड़कर अपनी माँ और उसकी रूम मेट रूपा मजूमदार को देखा जो सो रहीं थीं। माँ की बात लगातार उसके मन में गूँज रही थी। संवेदना ने बालकनी के रेलिंग के आधे हिस्से में अपने पाँव जमाकर उस बारहवें माले की बालकनी की छोर से नीचे ज़मीन को देखा। .. बस एक छलांग। .. एक छलांग और वह इस दर्द भरी ज़िन्दगी से बच जाएगी! संवेदना ने रेलिंग को ज़ोरों से पकड़ा और चंद लम्हों में उसकी दुःख भरी यादें उसकी माँ की बात के साथ शूल बनकर उसे लगातार चुभ रहीं थीं। जैसे ही वह कूदने के लिए कुछ और झुकी तो ठंडी हवा के झोंके ने उसके चेहरे को स्पर्श कर मानो उसे दुःखों के आवेग को शिथिल कर दिया।
संवेदना रेलिंग से आहिस्ता नीचे उतरी । उसका सारा शरीर शिथिल हो गया था। वह रेलिंग के सहारे बालकनी में बैठ गई। उसकी माँ की आवाज़ अभी भी उसके मस्तिष्क में गूंज रही थी। संवेदना ने मन ही मन सोचा क्या माँ ने उसकी दुरावस्था को देख उसे कष्टों से निजात पाने के तरीके की ओर इशारा किया था? या वह इतनी कमज़ोर हो गई है कि उसे अपने आप पर भरोसा नहीं रहा ? उसने तो किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है तो उसने अनजान डर को अपने ऊपर कैसे हावी होने दिया? वह अपने आपको कमज़ोर समझकर हार मान रही है? उसका स्वाभिमान उसका दंभ नहीं है और उसकी संवेदनशीलता उसकी कमज़ोरी नहीं है।हम हर परिस्थिति और परिवेश को समझकर कैसे कार्य करते हैं जिससे किसी का अहित या कष्ट ना हो।हम किसी के दुःख का कारण ना बने और ना ही किसी को बनने दें। .... संवेदना ने आकाश की तरफ देखा। आकाश में टिमटिमाते तारों को देखा; उनमें से कई तारे अब अस्तित्व में नहीं हैं पर उनकी रौशनी हम तक पहुँच रही है उनके स्थाई प्रतिबिम्ब की तरह।
"संवेदना, तू क्या ख्यालों में खोई हुई है ? कब से कंप्यूटर के सामने बैठकर क्या सोच रही है ?.... "
माँ की आवाज़ संवेदना को अतीत के लम्हों से वर्तमान के हकीकत में ले आई।
एक अरसे बाद संवेदना ने उस ईमेल बक्स को खोला। उसने तो सभी मैट्रिमोनियल वेबसाइट से अपने प्रोफाइल निकाल दिए थे। उन वेबसाइट्स से कोई ईमेल आने की गुंजाइश नहीं थी। उसने ईमेल बॉक्स मैं बैंकों, इन्शुरन्स कम्पनियों , प्रॉपर्टी बेचने वालों, टेलीफोन कंपनियों और सट्टे बाजार के एजेंट्स के इश्तेहार भरे ईमेल पाए। संवेदना मन ही मन मुस्कुरायी कि इन कम्पनिओं ने यह सब चिट्ठियाँ पूँजीपतिओं को भेजनी चाहिए। यह सोचते हुए वह ठहाके लगाकर हँसने लगी और यादों के बवंडर ने मानो उसे वर्तमान से अतीत में पहुँचा दिया; अब से बीते दस सालों में. खासकर उन दिनों में, जब वह बम्बई में नौकरी कर रही थी। २००८ और २००९ में हुई अर्थनैतिक उथल पुथल के चलते उसकी नौकरी चली गयी। २०१० में उसे बम्बई वाली नौकरी बड़े मुश्किल से मिली थी। बम्बई में चार बैडरूम वाले फ्लैट में रहने वाली तेरह पेइंग गेस्ट में से एक थी।
संवेदना चालीस वर्ष के उम्र की देहलीज़ पार कर चुकी थी। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। पिता ने अपना कार्यकाल कागज़ बनाने की फैक्ट्री में बिताया और माँ ने गृहस्ति और उसे संभाला। वह एक साधारण सी लड़की अनुशासन में पली बढ़ी। उसके माता पिता ने उसे हमेशा ज़िन्दगी और समाज की विषमताओं से संभालकर रक्खा। संवेदना की माँ की ख्वाहिश थी कि बेटी पढ़ लिखकर अपना गृहस्त जीवन बिताये, पर पिता चाहते थे कि वह स्वावलम्बी हो।
नौकरी से अवकाश पाने से पहले संवेदना के पिता ने उसके मामा के साथ मिलकर व्यापार करने की कोशिश की पर कामयाब ना हो पाए। परिवार को आर्थिक तंगी और विषम परिथितिओं का सामना करना पड़ा। संवेदना पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने लगी। वह स्कूल में पढ़ाने लगी। उसकी वेतन घर चलाने में काम आती । उसकी माँ बहुत दुःखी रहती संवेदना अपने माता पिता की कुंठा को भली भांति समझ पाती और आर्थिक परेशानियों के कारण घर में कलह होना स्वाभाविक था। इस विषम परिस्थिति का असर संवेदना पर पड़ा। उसने ठान लिया कि वह विवाह नहीं करेगी। वह और अच्छी नौकरी के लिए कोशिश करने लगी। संवेदना की माँ ने पूरी कोशिश की उसके लिए योग्य वर ढूंढने की और संवेदना से ज़्यादा उसकी माँ मायूस हुई, पर उन्होंने आस नहीं छोड़ी। साधारण सी दिखने वाली, शांत, सुशील, गंभीर व्यक्तित्व वाली संवेदना दुनिया के दांव पेंच से अनजान अब ज़िन्दगी के जद्दो जहद से जूझने लगी। नैतिकता, सतकर्म, सत्यनिष्ठा और लगन से कार्य करने में विश्वास करने वाली संवेदना दफ्तर की राजनीति, चापलूसी, चाटुकारिता, सहकर्मियों से कार्य में प्रतिस्पर्धा कर उनका अपनी उन्नति और कामयाबी पाने के लिए प्रयोग करना नहीं जानती थी। वह अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी। कारणवश, वह अपने सहकर्मियों की तरह तरक्की की सीढ़ियों को नहीं चढ़ पायी पर उसका सरल मन यही सोचकर खुश होता कि उसने औरों का भला किया है नुक्सान नहीं, और ज़िन्दगी के अंधड़ से निरंतर जूझती रही।
बम्बई के दफ्तर में उसके सहकर्मी उन छात्रों की उम्र के थे जिन्हे उसने स्कूल में पढ़ाया था। अब वह उसके अफसर भी थे, पर संवेदना ने परिस्थितियों के साथ समझौता कर अपना कार्य करती रही.
पेइंग गेस्ट में भी लड़कियां उससे आधे उम्र की थीं। वह सबके साथ बनाकर चलने की कोशिश करती पर उनकी बेबाक बातें उसे चुभती थीं. संवेदना को ना दफ्तर में और ना ही पेइंग गेस्ट हाउस में सुकून से काम कर और रह पा रही थी. उसके कार्यकाल में शुरू शुरू में उसके सहकर्मी उससे मज़ाक कर कहते थे कि वह "मैरिज मटेरियल" है। इतना संवेदनशील होकर कॉर्पोरेट क्या कहीं पर भी ना काम कर सकता है और ना ही करने दे सकता है।
संवेदना के परिवार जनों ने महसूस किया कि उसका विवाह ही उसके दुःखों का समाधान होगा। संवेदना से संपर्क के लिए उन्होंने उसका ईमेल एड्रेस बनाकर उन सब मैट्रिमोनियल साइट्स में दिया जहाँ उसका प्रोफाइल बनाया था. उन्हें क्या मालूम था कि उनकी यह कोशिश संवेदना के लिए और भी बड़ी आफत बन जाएगी। समाज का दस्तूर है सरल व्यक्ति का फायदा उठाना उसका मज़ाक उड़ाना और उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचना। अगर वह प्रतिवाद करे तो उसे हठी और दाम्भिक घोषित कर देना।
संवेदना पेइंग गेस्ट हाउस के एक कमरे में और दो लड़कियों के साथ रहती थी। दोनों ही उसकी छात्राओं के उम्र की थीं पर वह उनके साथ मिलजुलकर रहती और उनके कर्मक्षेत्र और परिवार के कारण हो रहे उनके दुःख और कष्ट सुनती और समाधान पाने में मदद करती। कुछ समय पश्चात संवेदना ने पाया कि दोनों लड़कियाँ उसका फायदा उठाने लगी थीं। यह बात उसने उन दोनों को महसूस होने नहीं दिया।
अब संवेदना को मैट्रिमोनियल साइट्स पर बने जाली प्रोफाइल्स से ईमेल और हो हो Hi5 नामक सोशियल नेटवर्क साइट से चिट्ठी और मेसेज आने लगे। पहले उसने उन्हें सच्चा समझकर उनको उत्तर दिया और पाया कि वे उससे स्मगलिंग, मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गैर कानूनी काम करवाने के इरादे से संपर्क साध रहे थे। उनमें से बहुतों ने उससे पैसे मांगे। कि मलेशिआ में उनका करोड़ों का प्रोजेक्ट अटका पड़ा है और वह तीन चार लाख रूपये की आर्थिक मदद करे तो वे वहाँ की सरकार से उनका बकाया पैसा निकलवा सकते हैं। कुछ उसके साथ भद्दी बातें करने के लिए फ़ोन करते। संवेदना चालीस वर्ष की संवेदनशील औरत थी। इन सब वारदातों ने उसे झकझोरकर रख दिया। उसका माथा ठनका जब उसने फ़ोन नम्बरों की जांच की और पाया कि विदेशी नंबर फ़र्ज़ी थे और जो अपने आपको देश के अलग शहरों से फ़ोन कर रहे थे , दरअसल उनका फ़ोन नंबर बॉम्बे, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश के थे।
संवेदना मानसिक रूप से तब और टूट गयी जब उसे समझ में आया की पेइंग गेस्ट में रहने वाली कुछ लड़कियां बोरीवली में रहने वाले उनके भाइयों, मंगेतरों और दोस्तों के साथ मिलकर उसके साथ भद्दे chat करते थे। यह उसने तब भाँपा जब कुछ लड़कियाँ बहाने से उसके कमरे में आयीं और ठीक उसके पीछे खड़े होकर chat स्क्रीन को घूर घूरकर देखने लगीं। संवेदना ने जानकार बिना हड़बड़ाए कंप्यूटर ऑफ़ करने की गुस्ताखी नहीं की। उसने उन लड़कियों से उनके आने का कारण पूछा और उनके अलग अलग जवाबों ने उसके शक को यकीन में बदल दिया।
संवेदना की माँ ने भाँप लिया था कि उनकी बेटी बहुत कुंठित है पर वह उन्हें बताती नहीं। उन्होंने संवेदना के पास जाने का मन बनाया। दिसंबर का महीना था और माताजी सुबह बम्बई अपनी बेटी के पास पहुँच गयी। ज़िन्दगी के थपेड़ों ने उन्हें काफी हिम्मतवाली महिला बना दिया था। उन्होंने जब अपनी बेटी को देखा तो उनकी अंतरआत्मा आर्तनाद करने लगी। उनकी बेटी ग़मों के बोझ तले दबकर मानो जीना ही भूल गयी थी। जिस कंपनी के लिए संवेदना काम करती थी वह बंद होने की कागार पर थी। संवेदना ने उसकी माँ का अपने कमरे में रहने का इंतज़ाम कर दिया था।
इकत्तीस दिसंबर के दिन संवेदना ने अपनी चुप्पी तोड़ी और अपनी माँ को अपने सभी अनुभव बताये। उसकी माँ हतवाक हो एकटक अपनी बेटी की ओर देखती रही। समाज की जिस नृशंसता से उन्होंने अपनी बेटी को बचाने की कोशिश की थी, उनकी बेटी ने साल भर में सब कुछ अनुभव कर लिया था। बेटी की ज़िन्दगी की विडम्बना को वे भली भांति महसूस कर रहीं थीं अनायास उनकी नज़र कमरे से लगी बड़ी बालकनी पर पड़ी. पेइंग गेस्ट हाउस का फ्लैट इमारत के बारहवें माले पर था। अनायास उन्होंने कहा "अगर कोई इस बालकनी से नीचे गिरेगा तो उसका बच पाना असम्भव है। संवेदना , जो अब उदास और खोई खोई सी रहती थी , उसके माँ की कही बात उसके मन में दर्ज़ हो गयी। बार बार संवेदना के मन में उसके माँ की बात गूंजती रही।
रात को सभी नए साल का जश्न मनाकर सोने चले गए। संवेदना बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी ही कर रही थी कि उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बज पड़ी. हड़बड़ी में उसने यह सोचकर फ़ोन उठाया की घर से मामा -मामी नए साल की शुभ कामनाएं देने के लिए फ़ोन कर रहे होंगे। पर फ़ोन पर उसे कुछ सी पहचानी आवाज़ सुनाई दी। बौनी चटर्जी शराब के नशे में धुत उसे नए साल के लिए फ़ोन कर रहा था। संवेदना ने उस फ़ोन नंबर की भी तहकीकात की थी वह नंबर भी जाली था। चटर्जी साहब ने प्रोफाइल फोटो में इलेक्ट्रॉनिक सिंथेसाइज़र की तस्वीर लगा रखी थी. उसके अनुसार, वह सालों से स्विट्ज़रलैंड में रह रहा था, पर उसकी अंग्रेजी से उसकी बात झूठ साबित होती थी। जब चटर्जी साहब ने बंगाली में भद्दी बातें करने लगे तो संवेदना ।संवेदना ने उसे दोबारा फ़ोन ना करने को कहा; और यह भी कहा कि वह पुलिस से शिकायत करेगी अगर उसने दोबारा फ़ोन किया।
संवेदना चुप चाप रोती रही. भविष्य पूरा अंधकारमय नज़र आ रहा था उसे। दुनिया और लोगों पर से उसका भरोसा उठ गया था। संवेदना को पूरी दुनिया और सभी लोग मतलबी और क्रूर लगने लगे थे। पर वह अपने ज़िद पर कायम थी कि वह कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगी। अब उसे यह एहसास होने लगा था उसकी ज़िद उसके दुःखों का कारण है। तभी उसके मन मस्तिष्क में उसकी माँ की कही हुई बात गूंजने लगी "इस बालकनी से अगर कोई नीचे गिरेगा तो उसका बचना असंभव है!"
अनायास संवेदना अपने बिस्तर से उठी और बालकनी के रेलिंग के पास जाकर रुकी। मन में हताशा के अंधड़ में उन पलों की यादें बिजली की तरह कौंधने लगी जब वह उन झूठे और मक्कार लोगों पर यकीन कर इसी बालकनी में खड़े होकर उनके फ़ोन का जवाब देती थी। आंसुओं की धारा अविरल उसकी आँखों से बहने लगी। सिसकियों ने उसके शरीर को झकझोर दिया था। रुंधे हुए गले से सिसकियों की प्रतिध्वनि को रोकने की कोशिश करते हुए उसने मुड़कर अपनी माँ और उसकी रूम मेट रूपा मजूमदार को देखा जो सो रहीं थीं। माँ की बात लगातार उसके मन में गूँज रही थी। संवेदना ने बालकनी के रेलिंग के आधे हिस्से में अपने पाँव जमाकर उस बारहवें माले की बालकनी की छोर से नीचे ज़मीन को देखा। .. बस एक छलांग। .. एक छलांग और वह इस दर्द भरी ज़िन्दगी से बच जाएगी! संवेदना ने रेलिंग को ज़ोरों से पकड़ा और चंद लम्हों में उसकी दुःख भरी यादें उसकी माँ की बात के साथ शूल बनकर उसे लगातार चुभ रहीं थीं। जैसे ही वह कूदने के लिए कुछ और झुकी तो ठंडी हवा के झोंके ने उसके चेहरे को स्पर्श कर मानो उसे दुःखों के आवेग को शिथिल कर दिया।
संवेदना रेलिंग से आहिस्ता नीचे उतरी । उसका सारा शरीर शिथिल हो गया था। वह रेलिंग के सहारे बालकनी में बैठ गई। उसकी माँ की आवाज़ अभी भी उसके मस्तिष्क में गूंज रही थी। संवेदना ने मन ही मन सोचा क्या माँ ने उसकी दुरावस्था को देख उसे कष्टों से निजात पाने के तरीके की ओर इशारा किया था? या वह इतनी कमज़ोर हो गई है कि उसे अपने आप पर भरोसा नहीं रहा ? उसने तो किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है तो उसने अनजान डर को अपने ऊपर कैसे हावी होने दिया? वह अपने आपको कमज़ोर समझकर हार मान रही है? उसका स्वाभिमान उसका दंभ नहीं है और उसकी संवेदनशीलता उसकी कमज़ोरी नहीं है।हम हर परिस्थिति और परिवेश को समझकर कैसे कार्य करते हैं जिससे किसी का अहित या कष्ट ना हो।हम किसी के दुःख का कारण ना बने और ना ही किसी को बनने दें। .... संवेदना ने आकाश की तरफ देखा। आकाश में टिमटिमाते तारों को देखा; उनमें से कई तारे अब अस्तित्व में नहीं हैं पर उनकी रौशनी हम तक पहुँच रही है उनके स्थाई प्रतिबिम्ब की तरह।
"संवेदना, तू क्या ख्यालों में खोई हुई है ? कब से कंप्यूटर के सामने बैठकर क्या सोच रही है ?.... "
माँ की आवाज़ संवेदना को अतीत के लम्हों से वर्तमान के हकीकत में ले आई।