पाँव की जूती
कई साल से यह दम्पति
जी रहे थे कलह भरी ज़िन्दगी।
दोनों ही थे मानसिक यातनाओं से बहुत ही दुःखी।
बाहर की ज़िन्दगी की रेलम पेल से थक हारकर
पति जब घर लौटता था,
वह अपनी सारी परेशानी से
गुस्से और चिड़चिड़ेपन का घोल बनाकर
अपनी पत्नी पर उढ़ेलता था।
बात बात पर वह यही कहता
"तू मेरे पाँव की जूती है !"
"तू मेरे घर के दरवाजे पर बिछी पायदान है !"
हर बार ताने सुनकर पत्नी अपने खून का घूँट पीकर चुप रह जाती थी।
अकेले में वह सिसकसककर खून के आँसू बहाती थी।
एक दिन दफ्तर से परेशान होकर पति जब घर लौटा,
हर दिन की तरह उस दिन भी उसने अपनी पत्नी को जी भरकर कोसा।
आखिरकार पत्नी के सब्र का बांध टूट ही गया।
उसने अपना झुका हुआ सिर उठाकर आँखों से आँखे मिलाकर कहा -
"अगर मैं हूँ आपकी जूती और पायदान , तो आपने मुझे बना दिया है महान :
झुकना पड़ता है आपको इस्तेमाल करने अपनी जूती और पायदान।
मुझमें है शक्ति आपके क़दमों को रास्ते में आये रोड़ों से बचाने की।
मुझमें है धैर्य आपके दूषित क़दमों और जीवन को पुनः स्वच्छ बनाने की।"
यह सुनकर पति हो गए मौन।
फिर कभी नहीं किया उन्होंने अपनी पत्नी का अपमान।
कई साल से यह दम्पति
जी रहे थे कलह भरी ज़िन्दगी।
दोनों ही थे मानसिक यातनाओं से बहुत ही दुःखी।
बाहर की ज़िन्दगी की रेलम पेल से थक हारकर
पति जब घर लौटता था,
वह अपनी सारी परेशानी से
गुस्से और चिड़चिड़ेपन का घोल बनाकर
अपनी पत्नी पर उढ़ेलता था।
बात बात पर वह यही कहता
"तू मेरे पाँव की जूती है !"
"तू मेरे घर के दरवाजे पर बिछी पायदान है !"
हर बार ताने सुनकर पत्नी अपने खून का घूँट पीकर चुप रह जाती थी।
अकेले में वह सिसकसककर खून के आँसू बहाती थी।
एक दिन दफ्तर से परेशान होकर पति जब घर लौटा,
हर दिन की तरह उस दिन भी उसने अपनी पत्नी को जी भरकर कोसा।
आखिरकार पत्नी के सब्र का बांध टूट ही गया।
उसने अपना झुका हुआ सिर उठाकर आँखों से आँखे मिलाकर कहा -
"अगर मैं हूँ आपकी जूती और पायदान , तो आपने मुझे बना दिया है महान :
झुकना पड़ता है आपको इस्तेमाल करने अपनी जूती और पायदान।
मुझमें है शक्ति आपके क़दमों को रास्ते में आये रोड़ों से बचाने की।
मुझमें है धैर्य आपके दूषित क़दमों और जीवन को पुनः स्वच्छ बनाने की।"
यह सुनकर पति हो गए मौन।
फिर कभी नहीं किया उन्होंने अपनी पत्नी का अपमान।
You Are At My Feet
For many years this couple
Lived a life, which wasn’t very peaceful.
Both of them endured immense mental agony-
Bogged down by daily life’s travails
When the man used to return to his lair,
He would rudely let his steam off on his harried spouse-
Who, would be quietly waiting for him there.
He would call her the shoes of his feet.
He would mock her as a doormat at the gate.
She would quietly listen to his raging rant.
When alone, she would shed tears of penitence.
One day, when the harried spouse returned home from work,
And as usual, he riddled her heart with his blatant mocks;
She looked into his eyes; and broke her silence,
This is what she said:
“If I am your pair of shoes and the doormat, according to
you;
You have complimented me, for which I thank you:
You stoop to use your shoes and doormat
For, I have the strength to protect you from the challenges
in your path.
For, I am stoic enough to endure the pain of cleansing you
off all that pollute you.”
On hearing this, her spouse fell silent;
And he seized to slander her ever since.