Do Not Be a Slave of Your Beliefs
Blind Faith (अंध विश्वास )
हरीया, सत्ताईस वर्ष का छरहरे बदन वाला युवक, कसबे के सरकारी दफ्तर में काम करता था। गर्मी के दिनों की भरी दोपहरी में वह दफ्तर के सामने चाय वाले की दूकान पर खाने की विरति के समय पान और बीड़ी खरीदकर सुस्ताने के लिए पहुँचा तो उसने अपने ताऊ, कुंणा को चाय पीते हुए पाया। कुणा ने इशारे से हरिया को बेंच पर उसके पास बैठने को कहा। हरिया ने एक चायसाथ ही एक गठी बीड़ी और पान का आर्डर दूकानदार को देकर अपने ताऊ के पास बैठ गया। "क्यों ताऊजी इस तरफ कैसे आना हुआ" कहकर उसने दुकानदार के हाथ से चाय का गिलास लिया और गरम चाय की हलकी सी चुस्की ली। कुणा ने हरिया की पीठ थपथपाते हुए कहा , "बस, साहबजी ने तुम्हारे दफ्तर के बगल के बैंक में काम से भेजा था, तो तो यहाँ आना हो गया। और बताओ तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ?" हरिया ने चाय पीते हुए कहा , "बस ताऊजी , आपकी दुआ और सिफारिश से यह सरकारी दफ्तर में पियोन की नौकरी तो मिल गयी है, सब ठीक ही चल रहा है। " कुणा ने अपना गला खंखारते हुए धीमी आवाज़ में पूछा "बस तनख्वाह से ही चला रहे हो या ऊपर की कमाई भी हो रही है कि नहीं ? नहीं तो बनिए से लिए उधार के पैसे कैसे भरपाई करेगा ? उस उधारी से ही तो सिफारिशी चढ़ावा (घूँस ) देकर ही तो नौकरी मिली है?" कहते हुए कुणा ने बीड़ी सुलगायी। हरिया ने चाय का खाली गिलास दूकानदार को थमाते हुए कहा "हाँ ताऊजी वह तो पहले दिन से ही हो रही है , पर अभी थोड़ा मंदा चल रहा है क्योंकि दफ्तर के ऊपर जो मंत्री जी आये हैं वह कड़क किस्म के हैं। इसलिए अब बड़े बाबू सभी चढ़ावा मेरे द्वारा नहीं लेते हैं। लेते हैं तो छोटी मोटी रकम लेते हैं और सुना है, बाकि वह बैंकों और कंप्यूटर के और बाकि तरीकों से लेते हैं। पता नहीं ऐसे कितने दिन चलेगा , नहीं तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी। " कहकर हरिया ने तम्बाकू वाले पान के बीड़े को मुँह में डालकर चबाने लगा और दूकानदार से पान के पत्ते की डंडी पर कत्था लगाकर देने को कहा। कुणा ने गंभीर होकर कहा, "यह मंत्रीजी के चोंचले ज़्यादा दिन तक नहीं चलने वाले। सबकी हाय लेकर कोई ज़्यादा दिन टिक पाता है क्या ?मंत्रियों के ढकोसले हैं। हाथी के दाँत खाने के और , दिखने के और : सबको मालूम है कि पार्टी फण्ड के नाम पर मन माना डकारते हैं। फिर दफ्तर में आकर हम पर रौब जमाते हैं। यह सब क्या सबको मालूम नहीं है ?"ताऊजी की बात पर हामी भरते हुए हरिया ने कत्थे लगी पान की डंडी को चबाते हुए पूछा , "ताऊजी , आपतो प्राइवेट दफ्तर में काम करते हैं। वहाँ तो आपको चढ़ावा नहीं मिलता है, तो आपका कैसे चलता है ?"
ताऊजी अपनी जगह तनकर बैठते हुए हँसते हुए कहा ,"बीटा , वहाँ तो चढ़ावा और ज़्यादा मिलता है। मैं तो बैंक में चढ़ावा चढाने ही तो आया था और उसका अच्छा मोटा हिस्सा मुझे भी मिला है। हाँ यह बात अलग है कि दफ्तर में जो बाबू और मैडम काम करती हैं उनकी ऊपर की कमाई ज़्यादा नहीं है। जो ईमानदारी के नाम पर चढ़ावा नहीं लेते वह ऑफिस के बाद कुछ और काम करके कमा लेते हैं, बस इतना ही फरक है। हाँ , यह बात भी है कि कंपनी वाले लिखित में लेते हैं कि ऑफिस के बाद कोई और कमाई के ज़रिए नहीं बनाएंगे, पर लोगो को उसका तोड़ भी मालूम है." कहकर ताऊजी ठहाके मारकर हँसने लगे, अचानक गंभीर होकर कहा, "क्या बताऊँ हरिया, दफ्तर में देखा कि औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है." ताऊजी की बात से हैरान होते हुए हरिया ने पूछा , "ऐसा क्या हुआ ताऊजी, बताइये ना ?"
ताऊजी और एक प्याली चाय की फरमाइश करते हुए अपना कथन शुरू किया , "कुछ महीनों पहले एक अधेड़ उम्र वाली मैडम हमारे दफ्तर में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने लगी। उन्होंने बताया था कि उनको उनके साथ काम करने वालों के लिखे दस्तावेज़ की जांच और संशोधन के काम के लिए रखा था, पर उनसे सभी काम करवाते थे। उनका कई सालों का तज़ुर्बा था पर उनको उनकी आधी उम्र के लोगों के अंडर काम करना पड़ता था जो उनसे दिहाड़ी मज़दूर की तरह काम करवाते। वह मैडम बहुत ही चुप चाप रहती थी। वह काम करने के तरीके या कोई भी जानकारी चाहती तो उसे यही जवाब मिलता कि काम खत्म करो और जमा करते वक़्त अपने सवाल भी साथ में जमा करो। उन्होंने मुझसे कहा था कि , जबसे उन्होंने नौकरी सम्हाली तबसे उनकी जो मैनेजर थी वह छुट्टी पर चली गयी। जो देखता उन्हें दिहाड़ी मज़दूर की तरह काम थमा देता। उनके कॉन्ट्रैक्ट के कागज़ में उन्हें जो काम करने की जिम्मेदारी दी थी वह उनको नहीं दी जाती थी। " ताऊजी को बीच में टोकते हुए हरिया ने पूछा, "तो मैडमजी ने दफ्तर के बड़े बाबू से बात क्यों नहीं की ?"
ताऊजी ने दुकानदार से चाय का गिलास लेते हुए कहा , "बेटाजी, वही तो बता रहा हूँ , अमरीका में बैठी पांडे मैडम और लोगों को ऑफिस में नौकरी पर रखने वाली गिलानी मैडम, उन दोनों को कहा था मैडम ने। एक काम जो उनको दिया था पांडे मैडम ने , उसमे तो शुरू से ही ग़लतियां थी और पांडे मैडम ने ज़िद पकड़ ली कि मैडम ने वह काम ख़तम करके ही देना है क्योंकि उन्होंने एक दिन में काम ख़तम करके जमा करना है। पांडे मैडम चाहती थी कि मैडम मना कर दे और उनके खिलाफ गिलानी मैडम को बोलकर कार्रवाई करवाए। बेचारी मैडम ने पांडे मैडम से इतना ही कहा कि मेरा स्वाभिमान मेरे लिए बर्खास्त करने की मायने रखता है। वह बात उन्होंने दुःख में जोर से कहा और पांडे मैडम की इच्छा पूरी हो गई। उन्होंने गिलानी मैडम के पास मैडम के नाम से कम्प्लेन ठोंक दी। गिलानी मैडम ने दुनिया भर के इलज़ाम लगाकर मैडम को बर्खास्त करने की चिट्ठी भेज दी। तो जवाब में मैडम ने कंपनी के लिए जितने दिन काम किया था उसका सारा सबूती लेखाजोखा देकर और कॉन्ट्रैक्ट की चिट्ठी साथ में देकर जवाब दिया कि कंपनी का होकर वह बर्खास्त की चिट्ठी नहीं दे सकती क्योंकि गिलानी मैडम ने कॉन्ट्रैक्ट की चिट्ठी में तारीख वगैरह के संशोधन करके और हस्ताक्षर करके नहीं दी थी मैडम को। बहुत दुखी हो मैडम कंपनी से बहुत ही रुस्वा होकर गयी। " अपनी बात खत्म कर ताऊजी मानो अपने ख्यालों में खो गए।
हरिया ने ताऊजी का चाय का गिलास थामे हुए हाथ को हिलाते हुए पूछा , "ताऊजी वह मैडमजी क्या किसी वकील के पास गयी ? कंही और उनको नौकर मिली ?"
ताऊजी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "कहाँ बेटा , वह नौकरी छोड़कर चली गई। मैंने उनसे पूछा भी था तो उन्होंने कहा था। भाईसाहब , कोर्ट के पचड़े में पड़ूँगी तो लम्बे अरसे तक वकील की फीस नहीं भर पाऊँगी और ना ही मुझे कोई नौकरी पर रखेगा। मुझे जो मालूम है , उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली है। " कहकर एक घूँट में सारी चाय पी ली।
हरिया न बीड़ी सुलगाते हुए कहा , "ताऊजी, एक बात समझ नहीं आती , जब साहब लोग दफ्तर आते हैं या दफ्तर से जाते हैं तो वह हमे उनका बक्सा , फाइल , खाने का डब्बा उठाकर ले जाने को क्यों कहते हैं?"
ताऊजी ने हँसते हुए कहा , "यह उनका तरीका है हमे अपना आभार जताने का , कि हमारे कारण उनकी रोटी रोज़ी चल रही है। "
हरिया ने दुःख से बैठ गयी और मुस्कुराते हुए कहा, "यह आपने खूब कही ताऊजी, अगर हमारे कारण उनकी रोटी रोज़ी चल रही है तो उनके कारण हमे नौकरी से निकाला भी जाता है। चढ़ावा लेते हुए पकडे जाने पर वह हमे बली का बकरा बनाकर सबइलज़ाम हम पर ही मढ़कर हमे नौकरी से बर्खास्त कर देते हैं। वाह री दुनिया !"
हरिया की बात सुन ताऊजी मुस्कुराए और कहा "चलता हूँ हरिया , दफ्तर लौटकर बाबूजी को बैंक की रसीद देनी है। "
Belief (विश्वास )
"अरे लतिका तुम यहाँ अकेले बैठे बैठे क्यों हँस रही हो ?" वंदना, जो गेस्ट हाउस में लतिका के साथ वाले कमरे में ठहरी हुई थी, उसने लतिका के कमरे में घुसते हुए पूछा।
लतिका ने वंदना को कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, "अरे वंदना, मैं रौशनी की बात पर हँस रही हूँ।"
कुर्सी पर ना बैठकर वंदना ठंडी फर्श पर ही बैठ गयी और कहा , "वही ना, जो ऊपर वाले कमरे में रहती है ? उसका क्या किसी के साथ चक्कर चल रहा है और उसी बात पर तुम हँस रही हो ?"
लतिका अपने बिस्तर से उठकर फर्श पर बैठ गयी और हँसते हुए कहा, "नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं रे, कुछ देर पहले रौशनी आई थी बताया कि पिछले हफ्ते के शुक्रवार को वह कम्पनी के हेड ऑफिस गयी थी और लौटते वक़्त उसने ATM से खर्चे के लिए उसने हज़ार रुपये लिए थे। उसके कमरे की अलमारी में ताला नहीं लगता है। यह बात उसने कई बार गेस्ट हाउस के मैनेजर को भी बताई थी, पर किसी ने कोई समाधान नहीं किआ था। रविवार को जब कमरे साफ़ करने वाले आकर अपने काम करके जाने के बाद वह शॉपिंग जाने के लिए निकलने से पहले उसने अपने बटुए को देखा तो पाया कि हज़ार रुपए नदारद थे। उसके ध्यान में आया कि शनिवार से उसके कंप्यूटर पर i -ball के wifi सिग्नल आ रहे थे। उसका शक कमरे साफ़ करने वाले लड़कों पर गई। पर उसने ना ही अपने बैग और ना ही उसने अपने सामान को ताले चाबी में रक्खा। उसने फिर से मैनेजर को याद दिलाया कि उन्होंने कमरे और कमरे में रक्खी अलमारी की चाबी दुरुस्त करवानी है। उसने मैनेजर से यह भी पूछा कि वह क्या गेस्ट हाउस में ठहरे लोगों को wifi की सुविधा दे रहे हैं। तो मैनेजर ने कहा कि वह ऐसी कोई सुविधा नहीं देते। रौशनी जब अपने कमरे में लौट रही थी तो उसने उसके कमरे के पास वाले कमरे में रह रहे दो चीनी लड़के बरामदे में बैठकर अपने मोबाइल फ़ोन पर इंटरनेटका प्रयोग कर रहे थे। वह हमेशा उन्हें मोबाइल पर मोबाइल के ही गेम खेलते देखती थी, पर आज वह इंटरनेट browsing कर रहे थे। उसने पाया कि उसके computer में भी wifi के सिग्नल आ रहे थे। उसने तो अलग इंटरनेट का कनेक्शन ले रक्खा है. उसका जो सफाई करने वाले लड़कों पर विश्वास था वह बरकरार रहा।चलो वंदना, चलते हैं , नहीं तो सिनेमा हॉल पहुँचने में देर हो जाएगी। " कहकर लतिका फर्श पर से उठ खड़ी हुई और वंदना की बाँह पकड़करउसे फर्श पर से उठाया।
"पहले यह तो बताओ कि रौशनी ने i -ball वाला wifi इस्तेमाल किया था?" वंदना ने पूछा।
"नहीं , जिस दिन उसे अपना इंटरनेट कनेक्शन मिला, उस दिन उसने सिर्फ i -ball वाले इंटरनेट कनेक्शन को चेक किया तो पाया वह पासवर्ड प्रोटेक्टेड था। अरे रौशनी तो बेवकूफ लड़की है। हम क्यों उसपर अपना दिमाग खराब करें ?"
_______________________________________________________________
एक देश में अधिकाँश लोग एक धर्म और उससे जुडी रहन सहन और राज काज की मान्यताओं को मानते थे। उनका विश्वास था कि उनकी मान्यताएं ठीक है और जो उनकी मान्यताओं को मानते नहीं हैं वह उनके दुश्मन हैं। उन्होंने अपने दुश्मनों को मारना शुरू किया। उनके कुछ सैनिक दुश्मनों के धार्मिक स्थल पर पहुँचे और वहां के उपासक और उनके शिष्यों को मरने के लिए आगे बढे तो मठ के प्रधान उपासक ने कहा, "आपका मकसद हमे मारना है तो हम सब अविलम्ब आपके सामने खड़े हो जाते है आपका काम आसान करने के लिए ;पर आपको मेरे कुछ सवालों का जवाब देना होगा। "
सैनिकों के मुखिया ने प्रधान से सवाल पूछने को कहा।
प्रधान ने पूछा , "आप क्या बिना रौशनी के, अन्धकार में हमे मार सकते हैं ?"
मुखिया ने कहा : "नहीं , लेकिन इसका हमारे मकसद से क्या तात्पर्य है ?"
प्रधान ने कहा , "इसका मतलब है आपको हमे रौशनी में ही मार सकते हैं। आप बताइये , इंद्रधनुष अँधेरे में दिखता है या उजाले में ?"
मुखिया ने चिढ़कर जवाब दिया , "रौशनी में लेकिन इसका हमारे मकसद से क्या लेना देना ?"
प्रधान ने उत्तर दिया , "हम सब अलग मान्यता और आस्था रखने वाले इंद्रधनुष के रंगों की तरह अलग होते हुए भी एक ही ऊर्जा और रौशनी के बने हुए हैं। आपका मकसद है सभी रंगों को नष्ट कर अन्धकार में रहना। मुझे यह बताईये , कभी कोई केवल अन्धकार में रह सका है, दृष्टिहीन के अलावा ? तो बताइये, क्या आप ज़्यादा दिन खुद अन्धकारमें जी पाएंगे ? अन्धकार आप पर हावी हो जायेगा और आप एक दूसरे को ही ख़त्म करने लगेंगे। तब जाकर आपका मकसद पूरा होगा। जब कोई भी प्राणी ज़िंदा नहीं बचेगा।
प्रधान का उत्तर सुन सैनिकों का मुखिया कुछ देर चुप खड़ा रहा और फिर अपने सैनिकों को लेकर चला गया और फिर कभी कोई उस मठ के वासियों को मारने नहीं आया।
________________________________________________
विनय और संगीता के विवाह के उपलक्ष में उनके दोस्त चतुर्भुज ने उन्हें एक बक्सा उपहार में दिया।
No comments:
Post a Comment