नीरू एक बूढा वनवासी था। वह अपनी कुटिया में अकेला रहता था। वह दिन भर कुटिया के चारों ओर बागवानी और खेतीबाड़ी कर अपने दिन सुखपूर्वक गुज़ार रहा था। कुछ जंगली मुर्गियाँ उसके खेत और बगीचे में दाने चुगने आती, तो नीरू ने उनके रहने के लिए दड़बा बना दिया था।
एक दिन नीरू खेत में काम कर रहा था। उसके खेत में एक साँप ने दो अंडे दिए हुए थे। अनजाने में नीरू की कुदाल लगकर साँप का एक अंडा फूट गया और तभी नीरू ने दुसरे अंडे को देखा। उसने जल्द ही उस अंडे को मिटटी और सूखे पत्तों से ढक दिया। हर दिन जब नीरू खेत में काम करने जाता तो वह उस जगह को ज़रूर देखता जहाँ उसने साँप के अंडे को रखा हुआ था और एक दिन उसने देखा कि अंडा फूट रहा था और उसमे से एक काले रंग का सँपोलिया निकला। नीरू ने उसे अंडे के छिलकों समेत बाँस की टोकरी में रखा और ले जाकर बागीचे में उसके लिए बनाये खड्डे में रख दिया। फिर उसने खड्डे को पेड़ की सूखी टहनियों से ढक दिया।
नीरू रोज़ जंगली मुर्गियों द्धारा ठुकराए अण्डों को लाकर उस खड्डे के सामने सँपोलीए के खाने के लिए रख देता और कुछ देर बाद वह जब लौटता तो उसके द्धारा रखे अंडे गायब होते। तब नीरू खेत में काम करने चला जाता। कुछ दिन बीत जाने पर सँपोलिया एक बड़ा साँप हो गया। नीरू अक्सर उसे खेत और बगीचे में रेंगते हुए पाता।
जाड़े के दिन थे। नीरू मूंह अँधेरे ही जागकर दांतुन करने के लिए बगीचे में लगे नीम के पेड़ की टहनी तोड़ने गया। अनजाने में उसका पाँव उस साँप पर पड़ गया जो नीम के पेड़ के नीचे था। साँप ने जैसे ही नीरू पर पलट वार करने के लिए फन उठाया तभी नीरू ने अपना पाँव एक झटके से उठा लिया और कहा, 'माफ़ करना बेटा , गलती से पाँव तुझपर पड़ गया। आशा है मैंने तुम्हें चोट नहीं पहुँचाई। ' तब साँप ने नीरू से कहा, 'आपको मुझपर गुस्सा नहीं आया ? आप मुझे रोज़ खाना खिलाते हैं , फिर भी मैं जंगली मुर्गियों के अंडे और चूजों को खा जाता हूँ। मैंने यह भी देखा है कि आपने मुझे कई बार आपके बगीचे में घूमते नेवले और उनके बच्चों से कई बार आपने मुझे बचाया है। इन सबके बावजूद आपके पाँव लगने पर मैं आपको डसने आया , और आप मुझसे माफ़ी मांग रहे हैँ ?"
नीरू ने सांप के प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया , "बेटा, डरे तुम भी और मैं भी। मैं उस दिन भी डरा था, जब मेरे हाथों सांप का एक अंडा फूट गया था। मैं इसी लिए डरा था कि मुझ से अनजाने में जीव हत्या हो गयी। इसलिए मैंने दूसरे अंडे को सुरक्षित रख तुम्हे पैदा होने और जीवित रखने का प्रयत्न किया। तुम्हारी साँप की पाशविक प्रवृत्ति के कारण तुम खुद मुर्गियों के अंडों और चूजों को खाते थे, साथ ही तुमने मेरे खेत और फसल की भी कई बार रक्षा की।तुम्हारे कारण चूहे और और अन्य पतंगे खेत में नहीं घुसते थे। मैंने प्रयत्न किया कि नेवले या तुम या और कोई भी जीव आहत ना हो। मेरा पाँव जब तुमपर पड़ा तब मेरे मन में यही शंका थी कि कहीं मैंने कोई जीव हत्या तो नहीं की ! मेरा पाँव तुमपर पड़ने से डरे तुम भी। तुम्हारे पाश्विक प्रवृत्ति के कारण तुम आहत होने और अपने प्राण खोने का भय बदले की भावना में परिणत हुई , इसलिए तुम फुफ्कारकर मुझे डसने के लिए बढे। बेटा हमारे भय के कारण अलग थे। मैं संतुष्ट हूँ कि मेरे कारण तुम्हारी कोई क्षति नहीं हुई । " नीरू का उत्तर सुन साँप जंगल की ओर चला गया।
The Snake (Short Story)
Niru was an old man who was a
forest dweller. He lived in a hut all by himself. Throughout the day, he would
work in the garden and crop fields close to his hut. He enjoyed a quiet and
peaceful life. Few hens and fowls from
the forest used to come to his garden and field to peck on the seeds and grain.
Niru built an open pen for them close to the hut.
A snake had laid two eggs in Niru’s
and Niru was not aware of it. One day, while he was working in the field with
his spade, he accidentally broke one of the two eggs. Crestfallen Niru covered
the unbroken egg with loose earth and dry leaves. Henceforth, everyday, he
would check on the egg before he would begin working in the field. One day,
while checking on the egg, he found the egg shell crack and a black neonate
hatch. Niru picked it up, placed it in a wicker basket and covered it with
earth and dry leaves. He took it to the garden and placed it inside a hole he had
dug for it. He then covered the home with dry twigs. Every day, he would
collected few eggs discarded by the hens and place them in front of the hole
for the snakelet to feed on. After complete his daily chores at home, when he
would return to check on the snakelet’s hole, he would find the eggs gone. Niru
then would smile to himself and head towards the crop fields to tend to the
crops. Within a few weeks, the snakelet grew up into a snake. Niru would often find
him slithering in the garden and the field.
On a winter morning, Niru got up
early, while it was still dark outside. He went into the garden to pick a Neem
twig to brush his teeth and inadvertently stepped on the snake that lay coiled
up beneath the Neem tree. Just as the
snake hissed and raised its hood to strike at Niru, the latter jumped up and
pulled away his feet from the snake. He then exclaimed, ‘Forgive me son, I
accidentally stepped on you, as I could not see you in the dark. Hope I have
not hurt you.’ Then the snake asked Niru, ‘Are you not angry with me? You feed
me daily, yet I eat away the eggs and chicks from the pen. I have often seen
you protect me from the mongoose and its children living in your garden. In
spite of all that you have done for me, I did not hesitate to strike at you when
you unknowingly stepped on me; yet you are apologizing to me?’
Niru replied to the snake, ‘Son,
both you and I were afraid. I was afraid, even on the day I accidentally broke
one of the two snake eggs I found in the crop field. I was scared coz; I was the
cause of the loss of a life. That is the reason why I had picked up the
unbroken egg and tended to it. I tried my best to keep you alive and safe. It
was your serpentine instinct that made you prey on the chicken and eggs from the
pen. I cannot ignore the fact you protected my crop fields from vermin and
pests. I protected you from the mongoose because I did not want any of the
beings living in the garden hurt one another. When I accidentally stepped on
you, I was afraid of hurting or killing any being by stepping on it. You too
were afraid when I stepped on you. Your animal instinct was the root cause of
your fear of getting hurt of losing your life, which made you vengeful. You
their hissed up to strike me. Son, the reason of our fear was not the same. I
am glad I have not been the cause of your hurt or loss of life. ‘The snake
intently listened to Niru’s response and slithered away into the forest.
No comments:
Post a Comment