Thursday, July 25, 2019

बूझो तो जानें - III

मुझ बिन कोई भी ध्वज नहीं लहराता ।
मुझ बिन कोई पत्ता और बूटा नहीं हिलता। 
मैं हूँ, तुम्हारी नज़रों में , सदा ही अदृश्य। 
तुम मुझे महसूस करते हो क्षणे  क्षणे । 
गर्मी के मौसम में लू बन जाती हूँ। 
जाड़े में तुम्हें रज़ाई की याद दिलाती हूँ। 
सुबह और श्याम , तुम्हारे माथे पर मेरा स्पर्श ,
देता है तुम्हें सुकून और आराम। 
तुम्हारी हर साँस में हूँ। 
तुम्हारी हर आह में हूँ। 
तुम्हारी खिलखिलाहट में हूँ। 
तुम्हारी सिस्कियों में हूँ। 
तुम्हारे सरगम में हूँ। 
तुम्हारी आवाज़ में हूँ। 
हर प्राणी के प्राण में हूँ। 
जल की तरंगे मुझसे हैं। 
तुम्हारी कृत्रिम रौशनी की ऊर्जा हूँ। 
मेरे  शीतल स्पर्श के लिए 
तुम इस्तेमाल करते हो पंखा। 
हर पंछी की उड़ान में 
सदा साथ है मेरा। 
नाँव के पाल मुझे आगोश में भर ,
ले जाते यात्रिओं को दिगदिगान्तर। 
मेघ सदा तैरते मेरे अथाह समुद्र में। 
बन अदृश्य चादर बचाती हूँ पृथ्वी को   
हर उल्का पिंड और सूर्य के ओज 
के प्रलयंकारी कहर से। 
मुझमें रासायनिक विष घोलकर 
तुम करते हो अपनी साँस विषाक्त। 
पर्यावरण से जब करते हो परिहास ,
तब मेरे तूफानी तांडव पर 
तुम सब करते हो हाहाकार। 
मैं नहीं हूँ विनाशकारी ;
क्योंकि मैं तुम्हारे प्राणरूपी साँस हूँ। 
तुम्हारे फेंफड़े रुपी गुब्बारों में 
हर पल फूँकती प्राण हूँ। 
अनल की भी ऊर्जा हूँ। 
प्रेमपूर्वक आदर से रहो ,
तो तुम्हारे उत्साही प्राण में हूँ। 
नाश करोगे मेरा 
तो विनाश करोगे सभी प्राणिओं का। 
अंतरिक्ष, गभीर महासागर या पर्वतारोहण 
तुम्हारे लिए  असंभव  है मुझ बिन;
मेरे लिए हैं सभी प्राणी एक समान।
मैं हूँ हर पृथ्वीवासी की प्राण। 
तुम अब बूझो तो जानें क्या है मेरा नाम। 


Wednesday, July 24, 2019

बूझो तो जानें - II


सभी के रक्त की धारा में हूँ। 
नद -नदी की धारा में हूँ।
उनकी धारा से उत्पन्न तड़ित में हूँ। 
झरने और झील में हूँ। 
सागर और महासागर में हूँ। 
बावड़ी क्या नलकूप में हूँ।
पर्वत व उनकी श्रृंखला पर 
ष्वेत चादर सी बिछी रहती हूँ मैं। 
वाष्प और मेघ में भी हूँ। 
कृषक की जीवन दायनी हूँ मैं। 
धरा की अभिन्न अंग हूँ मैं। 
वर्षा व ओस की बूंदों में हूँ मैं। 
श्रम के पसीने, साहस व संवेदना 
के रक्त की कणों में हूँ। 
रंग नहीं है कोई मेरा।
धर्म नहीं है कोई मेरा। 
ठोस  , तरल , वाष्प 
सभी अवस्थाओं में हूँ मैं। 
पुष्प व् फल के मधुर  रस में हूँ। 
ख़ुशी व ग़म के आंसुओं में हूँ।
वनस्थालिओं की जीवनधारा हूँ मैं।
मरुस्थल में दुर्लभ हूँ मैं। 
तुम कहते हो जीवन दायिनी हूँ मैं;
पर बोतलों में भरकर बिकती हूँ मैं। 
मीलों की दूरी पार कर, 
मुझे गागर में सहेजकर भर,
गाँव की "अबलाएँ" लातीं मुझे अपने घर;
बनाकर अपनी मेहनत का पसीना,
लातीं हैं मुझे अपने माथे पर सजाकर। 
मुझतक पहुंचना है उनके लिए दुर्गम। 
नगर वासियों ने मुझतक पहुँचने का पथ 
किया है खुद के लिए सुगम;
पर इस चेष्टा से वे करते धन अर्जन। 
झरने, नदियों व  कूप  में कम,
गटर , पंक व नाले में ज़्यादा मिलती हूँ मैं। 
बाढ़ के कहर, सुनामी की लहर हूँ मैं। 
तुम मेरा दुरुपयोग करोगे,
तो कहर बरपाउंगी तुमपर। 
'गर तुम मेरा सदुपयोग करोगे ,
तो जीवनदायिनी रहूंगी जन्मजन्मांतर। 
दीन दुःखियों के लिए हूँ जैसे गागर में सागर। 
धनी कोशिश करते मुझे धन की भांति 
बांधके स्वार्थी प्रयोग करने  पर। 
भूलो मत , हम सभी हैं प्रकृति के अभिन्न अंग। 
प्राकृतिक नियमों का रहे हमें स्मरण।
उनका उलंघन बनता है प्रलय का कारण। 
अब तुम समझ गए होगे मैं हूँ कौन। 
तुम बूझो तो जानें क्या है मेरा नाम। 

Monday, March 11, 2019

Thank You, Ade! I shall Always Cherish Your Gift!



In the year 1982, my father was a member of a team of paper technologists from India assigned to commission a paper-making factory in Nigeria's Kwara State. The Nigerian Government provided residential quarters to the Indian team and their families. 

Twice I visited my parents during college vacations. During such a visit, I met a tall, slim Nigerian teenager, and high school student, Adekunle Omodele; who, during his free time would help my mother with household chores. Initially, he was apprehensive to try Indian cuisine, but soon became a fan of my mother's cooking. 

Often I would walk down with him to visit a neighbour listening to him narrate his experience of school and life with his mother, a single parent. He once said, "Sister, In the Atlas book Nigeria is bigger than India!" I smiled and asked him what else he learnt about the two countries. He promptly asked, "Nigerian soccer team participates in the Soccer World Cup, but India does not, Why, sister?" I quietly replied, 'We are not as good as you are in the game of soccer." I smirked thinking, Indians excel in the colonial game of Cricket.

One day Ade handed me his school lesson sheet and asked me to read it aloud. When I finished reading it, Ade's face beamed with pride and happiness, "Sister, you can read Yuroba language!" It is a language spoken in the western regions of Nigeria and it uses Latin alphabets. Amused by his elation I replied, "Ade, it is written in English. I could not understand a single word I have read." His optimism touch my soul, "Sister, if you can read, then in no time you will be able to learn and use the language too! People will call you a brown complexioned person who can speak in Yuroba!" I then realised the value of a language as a bridge to diverse geographies and myriad cultures. Little did I know it was my last visit to the beautiful country of a large continent called Africa. I shall always cherish fond memories of my visit to the country and its people.
According to Ade, education was free and compulsory for all Nigerian children up to the age of fourteen years. Students of all the Nigerian schools and colleges were responsible for their cleanliness, Everyday the students used to clean and maintain the school and college premises. Can we imagine the students of elite Indian schools and of the educational institutions from Ivy League doing so? Would the corporate honchos, Judiciary, Administrative and Executive/Legislative big wigs regularly clean and maintain their office space?
True, when we compare ourselves with someone else we tend to compete and become bitter if not better. It is equally true when you compare with love and empathy for the betterment then you do not become bitter. 

After successfully commissioning the paper-making factory the team from India returned home. It was then Ade gave a book to my mother asking her to present it me, to his sister. He used to address my mother as "Mamma". He said, "Mamma, I used to save some of the money you used to give me. I have got this book from my savings. When you reach home, please give this to my sister." The book is "Oxford Advanced Learner's Dictionary'. ('Junu' is my informal or nickname.)
For the benefit of those who enjoy and would like to learn a language: https://www.humanrightscareers.com/magazine/how-to-learn-the-un-languages-for-free/
Ade, my dear brother, I shall always cherish your gift!
 Image Source: https://in.pinterest.com/pin/410883165990672820/?lp=true

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