हमारा यह है मानना,
वृद्धावस्था भूत है अपना।
हमारा यह है मानना ,
यौवन वर्तमान है अपना।
हमारा यह है मानना ,
शैशव (बालपन ) भविष्य है अपना।
अर्थात :
हम यह मानते हैं ,
वृद्ध हमारे भूत हैं।
हम यह मानते हैं ,
युवा हमारे वर्तमान व भविष्य हैं।
हम यह मानते हैं ,
बालक हमारे भविष्य हैं।
बल्कि :
यथार्त यह है ,
वृद्ध हमारे भविष्य हैं।
युवा हमारे हैं वर्तमान।
शिशु हैं हमारे भूत के सामान।
कारण समझना है बहुत आसान :
इसपर ज़रा आप रखिये ध्यान।
वृद्ध हैं शिशु व युवा का भविष्य ,
वह कर उपयोग वृद्ध के अनुभव और ज्ञान ,
शिशु और युवा कर सकते हैं
अपना वृद्धावस्था, सुखमय,
आनंदमय और आसान।
युवा हैं शिशु और वृद्ध का वर्तमान,
कर उपयोग युवा का उमंग और जोश,
शिशु और वृद्ध कर सकते हैं अपना वर्तमान,
सुखमय, आनंदमय और आसान।
शिशु हैं युवा और वृद्ध के भूत ,
कर शिशु के निश्छल मन,जिज्ञासु मस्तिष्क का मान,
स्वाभिमानी युवा और वृद्ध करें अपना भूत ,
सुखमय, आनंदमय और आसान।
यह है पीढ़ी की अंतर का सुखद समाधान।
कर स्थापित सेतु तीनों पीढ़ियों में
करें अर्जितप्रेम, सौहार्द्य,
स्वाभिमान और सम्मान।
No comments:
Post a Comment