Saturday, February 1, 2020

बूझो तो जानें - IV


मैं हूँ एक आग का गोला। 
मेरे कारण  होता है 
पृथ्वी पर अँधेरा और उजाला। 
चंदा जो मंडराता पृथ्वी के इर्द गिर्द 
पृथ्वी पर करता मेरी रौशनी को अवलोकित। 
पंच तत्वों में से एक मै हूँ। 
नव ग्रहों का आधार मैं हूँ। 
अनगिनत तारों में से एक मैं हूँ। 
पृथ्वी एक वर्ष में पूरा करती मेरी परिक्रमा। 
 एक वर्ष में अनुभव करते हर एक मौसम सुहाना:
सर्दी में मैं सदा नम रहता हूँ, 
ठण्ड के मज़े लेने देता हूँ। 
वसंत ऋतू आने पर -
वसंत पंचमी के साथ 
गुलाबी सर्द का अनुभव करवाता हूँ। 
गर्मी में मैं अँगारे बरसाता हूँ ;
मेरी तपन से पड़ता सूखा और आकाल, 
तब पृथ्वी और उसके  प्राणिओं को 
जल की जीवन दायिनी शक्ति का
 मैं एहसास कराता हूँ हर पल।  
जब मेरे सामने आता है
घना पर्दा बादलों का;
तब तुम करते बारिशों का 
बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार। 
उसका सहर्ष  स्वागत करते,
जब आती बारिश की जीवन दायिनी फुहार।
उसी फुहार से डर जाते हो
जब वह हो जाती है प्रलयंकारी बाढ़ !
जैसे ही पृथ्वी ज़रा झुकती है
अपने निर्धारित पथ पर
तो साथ ले आती है पतझड़:
किसान काटते अपने मेहनत की फसल।
तुम्हारे लिए यह है मौसम त्योहारों का।
दशहरे का , और दीवाली का।
कब यह मौसम शीत में जाता है बदल।
जब पड़ती है कड़ाके की ठण्ड,
तब  मनाते हो तुम वर्ष की सबसे लम्बी रात,
और बड़े दिन का त्यौहार।
पृथ्वी करती हवा की चादर ओढ़
मेरी हानिकारक किरणों से
अपना और सभी प्राणिओं का बचाव।
तुम्हारे नश्वर सुख के लोभी प्रयत्नों से
करते उस वायुमंडलीय चादर में सुराख़,
तब तुम पृथ्वी और उसके पर्यावरण का
करते हो पृथ्वी और तुम सबका सदा के लिए नुक्सान।
पर, जब तुम करते हो करते हो
मेरी जीवनदायिनी ऊर्जा का
मानवता के हित में निरंतर प्रयोग;
तुम पृथ्वी और उसके पर्यवरण का
करते हो सम्मानपूर्वक उपयोग।
तुम त्योहारों और तिथिओं के लिए
मुझ पर आधारित पंचांग देखते हो।
विज्ञान में मेरे विषय में पढ़ते हो।
आदि मानव हो या मानव सभ्यता:
शासक हो या उसकी प्रजा;
प्रजातंत्र, गणतंत्र या सर्वोपरी मानवता,
प्राणी मात्र मुझे अपने उत्स के रूप में है जानता।
पृथ्वी के गर्भ में हूँ सदैव विराजमान। 
                                                     तुम अब बूझो तो जानें क्या है मेरा नाम। 










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